मेरा नौकरी से निलंबन?
जय जोहार सगाजनों
“एक बाप निलंबित होकर घर पहुंचा तो घर में उपस्थित सभी समझदार सदस्य उसे उसकी गलती का अहसास करवा कर डांट रहे थे, फटकार लगा रहे थे,हे भगवान अब आगे क्या हुआ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था वैसा नहीं करना चाहिए था? पहले भी कितनी बार समझाया समझ कहा पड़ती है आपको? पुरा घर परिवार तुम्हारे भरोसे चल रहा है? आधी तनख्वाह आयेगी अब किस्त कैसे भरेंगे? क्या खायेंगे? कैसे गुजारा होगा? वहां नहीं जाना था क्यों गये? वगैरह – वगैरह! घर में ऐसा माहौल था जैसे कोई मर गया हो? सभी ऐसे दु:खी थे जैसे मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया हो ? शिकायतकर्ता द्वारा मुझ पर जो आरोप लगाएं गये हो वह सब सच हो मैं गलत हूं। कुल मिलाकर मेरे तनाव का प्रतिशत अचानक सबने बड़ा दिया।”
लेकिन इसी बीच परिवार के सभी नकारात्मक सोच वाले लोगों के बीच एक सकारात्मक सोच वाली मेरी जान मेरी बेटी वहां पर उपस्थित थीं जो जमीन पर बिछी हुई दरी पर लेटकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी,उसको मात्र छः महीने ही हुए इस संसार में। मैंने जैसे ही उसे अपनी गोद में उठाया वह खिलखिला उठी और हंसने लगी, उसकी हंसी देखकर मैं अपने आंसू नहीं रोक पाया, सब लोग आश्चर्यचकित थे कि हमने इतना कुछ कहा इसे कुछ फर्क नहीं पड़ा लेकिन जैसे ही गोद में बेटी आई वह रो दिया। मेरी बेटी को कुछ पता ही नहीं कि उसका बाप कितना तनावपूर्ण स्थिति में है। उसको मेरे निलंबन से कोई मतलब ही नहीं था। उसे समय सिर्फ उसको अपने पिता का प्यार दिखाई दे रहा था।
कितना अच्छा होता ना हम समझदार नहीं होते? आपकी जिंदगी में चाहे जितना तनाव हो लेकिन जैसे ही बच्चे गोद में आते हैं आप सारा तनाव भूल जाते हो।”
: राकेश देवडे़ बिरसावादी