मेरा ठिकाना-2—मुक्तक —डी के निवातियाँ
अब किस किस को बतलाऊँ अपना ठिकाना
सीमा पर रहता हूँ, हर दिशा है आना जाना
प्रेम से पुकारते है लोग मुझे कहकर जवान
कर्म – धर्म है मेरा इस माटी पर मिट जाना !!
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डी के निवातियाँ_____@@@
अब किस किस को बतलाऊँ अपना ठिकाना
सीमा पर रहता हूँ, हर दिशा है आना जाना
प्रेम से पुकारते है लोग मुझे कहकर जवान
कर्म – धर्म है मेरा इस माटी पर मिट जाना !!
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