मेरा जीवन है ऋणी,
मेरा जीवन है ऋणी ,कर सेवा का भाव।
मात पिता आशीष दें,उनका जीवन छाव।
उनका जीवन छाव,कर्म का बनकर योगी ।
कंटक पथ पर बढा, योग व्रत लेकर भोगी।
कहें प्रेम कवि राय,ऋणी जीवन है तेरा।
माँ की सेवा करूँ , धर्म है जीवन मेरा।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मौलिक रचना।