मेरा घर
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है
संघर्षों से लड़कर विजयी होना
स्नेह मात पिता का सिखाता है
ये भाई बहन का प्यार भी देखो
प्रीत की नई परिभाषा गढ़ता है
जहां प्रेम दादा दादी का और
बच्चों का कलरव गूंजता हो
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है…
जीवन रूपी धूप में शीतल छाया
मेरी मां का आंचल है
सत्य मार्ग पर चलना सिखाता
मेरे पिता का संबल है
जहां राष्ट्रप्रेम की अलख
संस्कृति को अपने में समेटे हो
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है…
उंगली पकड़ दादा की अपने
पहला कदम जहां रखा है
दादी की किस्से कहानियों में
अपने को हरदम ढूंढा है
निस्वार्थ भाव से दादा-दादी
जहां प्रेम रस घोलते हों
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है…
नाना नानी के घर की बातें
कैसे सबको बतलाऊं मैं
वह स्नेह प्रेम मस्ती की बातें
कैसे भला भूल जाऊं मैं
जहां झाबा भर भर आम और
पूरी सब्जी जलेबी मिलती हो
वह मेरा घर मेरा प्यारा सा घर है…
इति
इंजी संजय श्रीवास्तव
बीएसएनएल, बालाघाट, मध्यप्रदेश