मेन- होल एक लघु व्यंग कथा
मेन होल – एक लघु व्यंग कथा
इतिहास गवाह है, कि सिंधु घाटी सभ्यता मे जल निकासी का उत्तम प्रबंध था । इसे उस वक्त की उन्नत सभ्यता का प्रतीक मानागया था । स्वतन्त्रता उपरांत सरकारें आती जाती रहहैं , पर जल निकासी का प्रबंध राम भरोसे ही रहा है । हम सब आधुनिक युग में उन्नत सामाजिक व्यवस्था मे रह रहे हैं । यहाँ विध्युत , जल एवं आवास की समस्या के साथ जल निकासी का उत्तम प्रबंध समय –समय पर किया जाता है । यह चुनावी नारों व वादों का प्रमुख विषय है , व चुनावी रणनीति का हिस्सा है । लेकिन बारिश आते ही सब “ढाक के तीन पात” साबित होते हैं । प्रति वर्ष बजट का भार बढ़ता है , जनता मंहगाई की मार से त्रस्त होती है , टैक्स बढ़ते हैं , किन्तु राजनीतिक प्रतिबद्धता एवं दृढ़ निश्चय के अभाव मे जमीनी स्तर पर कार्य न के बराबर होता है । आज का व्यक्ति, परिस्थितियों से समझौता करके अपनी नियति स्वयं तय करता है । नगर पालिका हो या नगर निगम के चुनाव , जल भराव को लेकर, कभी मच्छरों की भरमार को लेकर , कभी गंदगी के बढ़ते अम्बार को लेकर वोट बैंक की राजनीति होती रही है
प्रधान मंत्री जी का राष्ट्रिय स्वच्छता अभियान , जन- जन को जागरूक व जिम्मेदार अवश्य बनाता है, किन्तु सड़कों पर बड़ी –बड़ी झाड़ू लेकर जन- नेताओं का प्रतीकात्मक स्वच्छता अभियान गले नहीं उतरता , जब तक की जन भागीदारी शामिल न हो । स्वावलंबन की एक झलक स्वयं जनता मे प्रदर्शित होने लगे, तभी इस अभियान की सार्थकता है ।
स्वच्छता अभियान के अंतर्गत, हमारे साथ जो घटित हुआ वह भी अविस्मरणीय है । स्वच्छता अभियान के दौरान, कई बार स्थानीय नगर पालिका मे , स्थानीय मोहल्ले के निवासियों द्वारा कई मेन होल के खुले पड़े होने की शिकायत दर्ज कराई गयी, किन्तु आश्वासन के अतिरिक्त कुछ भी हासिल न हुआ ।
दो दिन पहले ही मोहल्ले के नरेश जी, मेन होल मे मोटर साइकल सहित समाते –समाते बचे। उनके पैर मे फ्रेक्चर हो गया ।
बरसात के पानी से लबालब मेन होल मे, एक बार एक कार का पहिया भी फंस चुका है । बेचारी नीना आंटी चोटिल होते –होते बची ।
अनेक जिंदगी दाँव पर लगी देख, मोहल्ले वासियों ने तय किया कि नगर पालिका के अधिकारी को सबक सिखाया जाय । दुर्गेश जी ने मोहल्ले वासियों को एकत्र कर नगर पालिका कार्यालय कूच किया । जब वे नगर पालिका कार्यालय पहुंचे, कार्यालय का दृश्य देख कर उनके मन मे जो भाव उठे, वो बहुत ही व्यंग्यात्मक थे । उन्होने देखा कि कुर्सी पर अच्छे खासे मोटे, पान के रसिया , एक मोटा साहब विराजमान हैं । दुर्गेश जी ने प्रार्थना पत्र अधिकारी को थमाया , अधिकारी ने बड़े ही साधारण भाव से प्रार्थना पत्र देखाऔर फंड की व्यवस्था होने तक इंतजार करने के लिए कहा ।
फंड की बात सुनते ही दुर्गेश जी भड़क गए , उनका गुस्सा फूट कर बाहर आ गया , गुस्से मे बड़बड़ाते हुए उन्होने कहना शुरू किया –फंड आयेगा कहाँ से जनाब !फंड का अभाव तो हमेशा बना ही रहेगा, क्योंकि फंड तो आपकी सेहत बनाने मे खर्च हो जाता है , दिख ही रहा है सारा फंड आप खा पी जाते है ।
दुर्गेश जी संख्या मे अधिक थे , अन्यथा अधिकारी के तेवर बिगड़ते देर न लगती ।
अधिकारी ने कहा –महानुभाव आप लोग संख्या मे अधिक हैं , वरना, आज तक किसी ने इस लहजे में मुझसे बात नहीं की थी ।
दुर्गेश जी ने बताया, कि किस तरह मोहल्ले वासीयों के प्राण संकट मे हैं , तथा किस तरह बारिश के मौसम में वे सब जोखिम मे जी रहे हैं ।
इतना सुनने के उपरान्त, अधिकारी के तेवर नरम पड़े , उसने कहा महानुभाव आप सब मात्र एक सप्ताह की प्रतीक्षा करें , इस दौरान मैं सभी मेन – होल में ढक्कन लगवाने की व्यवस्था करूंगा । दुर्गेश जी का तीर निशाने पर लगा था ।
उक्त आश्वासन के बाद, मोहल्ले वासियों की समस्या का अंत एक सप्ताह मे हो गया । सभी मोहल्ले वासी जोखिम भरी जिंदगी से मुक्ति पाकर खुश व सन्तुष्ट हो गए ।
16-07-2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
सीतापुर