मेघ गोरे हुए साँवरे
समीक्षा-
गुनगुनाहट की बुनावट के गीत
गीत की गेयता हमेशा से पाठक और श्रोता के मन को छूती रही है, इसीलिए कविता की मुख्य धारा में तथाकथित रूप से नई कविता के वर्चस्व की घोषणा के बाबजूद भी गीत का महत्व और आकर्षण किसी भी कालखंड में कम नहीं हो सका। यही कारण है कि आज भी आम आदमी को कविता के रूप में गीत ही सर्वाधिक भाता है, भले ही वह चाहे फिल्मी गीत क्यों ना हो। शायद इसीलिए कीर्तिशेष गीतकवि उमाकांत मालवीय गीत की महत्ता को गीत में ही अभिव्यक्त करते हैं- ‘गीत एक अनवरत नदी है…’, और प्रख्यात कीर्तिशेष गीतकवि वीरेन्द्र मिश्र गीत के प्रति अपने अतिशय समर्पण भाव को शब्दायित करते हैं- ‘गीत मैं लिखता नहीं हूँ/गीत है कर्तव्य मेरा/गीत है गत का कथानक/गीत है भवितव्य मेरा…’।
मुरादाबाद की वरिष्ठ कवयित्री डाॅ. अर्चना गुप्ता के गीत-संग्रह ‘मेघ गोरे हुए साँवरे’ के गीतों की यात्रा करते हुए सप्तरंगी इंद्रधनुषी गुनगुनाहट की बुनावट के आस्वादों से साक्षात्कार होता है जो कभी शृंगार, उत्सव, भक्ति, प्रकृति की मिठास में पँगे हुए लगते हैं तो कभी देश, जीवन, समाज का नुनखुरापन लिए हैं। नुनखुरापन इसलिए भी महसूस होता है क्योंकि आज के समय में जीवन जीने की राह में कदम-कदम पर अस्तव्यस्तता, आपाधापी, नकारात्मकता और अराजकता के इतने गति-अवरोधक उत्पन्न हो गए हैं कि सब कुछ कठिन लगने लगा है। ऐसे असामान्य समय के घुप्प अँधेरे में कवयित्री अपने एक सकारात्मक और प्रेरक गीत के माध्यम से रोशनी उगाने की कोशिश करती हैं- ‘वक्त जब विपरीत होता है कभी/फूल से भी तब हमें मिलती चुभन/जिन्दगी में जब बुरे हालात हों/टूटने देना न हिम्मत और मन/जब समझ आ जाएगी ये जिन्दगी/एक दिन पा जाओगे पहचान भी/दीप बनकर तुम सदा जलते रहो/फिर नहीं होगा तिमिर का भान भी।’
इसी तरह एक अन्य गीत में भी वह पूर्णतः दार्शनिक अंदाज़ में जीवन-मूल्यों की वास्तविकता को व्याख्यायित करते हुए समय की महत्ता को भी अभिव्यक्त करती हैं और प्रभावशाली ढंग से सकारात्मक संदेश भी देती हैं- ‘हमारा आज ही देखो हमारा कल बनाता है/न वापस लौट कर बीता हुआ ये वक्त आता है/समय ही तोड़ता रहता हमारे सामने सपने/यही है छीनता हमसे हमारे ही यहाँ अपने/यही गुजरे पलों को कल के सीने में छिपाता है/न बीते कल की तुम सोचो न आने वाले कल की ही/खुशी को तुम मना लो बस सुनो प्रत्येक पल की ही/जियो, अनमोल है हर पल, समय हमको सिखाता है।’
शिवपुरी(म0प्र0) के गीतकवि कीर्तिशेष विद्यानंदन राजीव ने जिस सहजता और सादगी से गीत को परिभाषित किया है वह बहुत महत्वपूर्ण है-‘कविता के उपवन में गीत चन्दन-तरु के समान है, जो अपनी प्रेरक महक से मनुष्य को जंगलीपन से मुक्ति दिलाकर जीने का सलीक़ा सिखाता है।’ डाॅ. अर्चना गुप्ता के गीत भी जंगलीपन से मुक्ति दिलाते हुए जीवन जीने का सलीका सिखाने में मददगार साबित होते हैं। निष्कर्षतः गीत-संग्रह ‘मेघ गोरे हुए साँवरे’ के गीतों की यात्रा करना पाठक को प्रेम, भक्ति और उत्सवों के खुशबूदार हरियाले रास्तों से रूबरू कराने के साथ ही एक अलग तरह की ताजगी का अहसास भी कराता है। निश्चित रूप से यह कृति साहित्य-जगत में पर्याप्त चर्चित होगी तथा अपार प्रतिष्ठा पायेगी, ऐसी आशा भी है और विश्वास भी।
समीक्ष्य कृति – ‘मेघ गोरे हुए साँवरे’ (गीत-संग्रह)
कवि – डाॅ. अर्चना गुप्ता
प्रकाशक – साहित्यपीडिया प्रकाशन, नोएडा
मूल्य – रु0 200/- (हार्ड बाइंड)
– योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद।
मोबाइल-9412805981