मेघो से प्रार्थना
मेघ से प्रार्थना
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भीषण गर्मी जेठ की,व्याकुल हृदय उदास।
देख तुम्हे आकाश में,कर बैठे थे आस।।
कर बैठे थे आस,अब कबहु बरसेगे,
जीव जंतु व्याकुल है,सब जल को तरसेगे।
कह रस्तोगी कविराय,क्यो करते शोषण,
समाप्त करो अब तो,ये गर्मी भीषण।।
आस जगाकर मेघ तुम,करते गए निराश।
खग मृग मानव मीन जग,सबका ह्रदय हताश।।
सबका ह्रदय हताश,जल को सब तरस रहे,
बताओ कोई कारण,क्यो नही बरस रहे।
कह रस्तोगी कविराय,सबकी बुझाओ प्यास,
जन जन जगत कर रहा,तुमसे ये आस।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम