मेघा आओ
मेधा आओ मेधा आओ
रिमझिम रिमझिम जल बरसाओ
प्यासी प्यासी है ये धरती
मेघ बरसकर प्यास बुझाओ
व्याकुल है सब पेड़ लताएं
हरा भरा फिर इन्हें बनाओ
ताल तलैया नदिया सूखी
इनमें अपना जल भर जाओ
गर्मी अब तो सही न जाए
जल बरसाकर ताप घटाओ
नजरें टिकी हुई हैं नभ पर
काले मेघा अब तो छाओ
कृषक ‘अर्चना’ डरे हुए हैं
इनको कुछ तो आस बंधाओ
डॉ अर्चना गुप्ता
20.06.2024