मेघना ब्रम्हास्त्र कथा राधिका छंद अंतिम किस्त
ब्रम्ह अस्त्र तेहि साधा,
कपि मन कीन्ह विचार।
मेघनाद ब्रम्हास्त्र कथा
अँतिम किस्त
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राधिका छंद 22
13/9=22
जब रावण लेने पास,शस्त्र के आया।
फरसा ने बारह कोस, रूप दिखलाया।
धरती का पूरा भार,उठे तो कैसें।
दसमुख रेता में धसा,फसा हो जैसे।
वह ज्यों ज्यों अपना जोर,
लगाता जाता।
त्यों त्यों फरसा भी भार, बढाता जाता ।
धस गये रेत में शीश,विकल तन भारी।
लग रहे डंक पर डंक,विकट लाचारी।
डस रहे हजारों सांप, लगें जहरीले।
मिट गया गर्व लंकेश,हो गये ढीले।
बच जायँ प्राण नहिं दिखे,कहीं पर चारा।
सुत मेघनाद को हाय ,समेत पुकारा।
आ इन्द्रजीत ने सभी, नजारा देखा।
लख शंकर ब्रम्हा तीर,किया मन लेखा।
भृगुवंशी का टकराव, खेदकारक है ।
गुरु का करना अपमान,
बना मारक है ।
छल बल से संभव काम,नहीं हो पाये।
बस शील विनय ही यहाँ,सफलता लाये।
पितु प्राण बचाने सही,रीति अपनाऊँ।
सबका पाने आशीष, चरण लग जाऊँ।
जो सोचा उसने किया,शरण आया है।
शिव ब्रम्हा भृगु आशीष,नेह पाया है ।
आशीष मिला तो हुआ, बड़ा अनहोना।
फरसा क्षण भर में बना,विशेष खिलौना।
फरसा लाकर मुनि दिया,विनय
के बल से ।
विधि ने ब्रम्हास्त्र प्रदान, किया सब हल से ।
शिवजी से बोले कृपा, गृजेश दिखाना ।
मेरी मरयादा नाथ,विशेष निभाना।
यह शस्त्र आप पर चले, कहीं बँध जाना ।
यह दिन विनती से भरा,याद में लाना ।
ब्रम्हा का वचन विचार, वीर हनुमाना।
बँध ब्रम्ह फाँस में गये,बाग रण ठाना।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
19/1/23