में बेरोजगारी पर स्वार
विसय. बेरोजगारी पर सवार
विधा. मुक्तक
दिनांक. २०:५:२०२४
212 212. 212. 22
जिन्दगी का एक पल अब हावि हैं”.
बन्दगी की सादगी आजादी है !
बरस कई बीत गये यही पीड़ा है:।
किताबो संग नाता रख आयाज हू
शास्त्रो का गठजोड़ इस मन को कहा,
ज्ञान तेरा व्यर्थ हैं जीवन की जकरत की नाजायज रख
वृक्ष बन तू ज्ञानदार ज्ञान की शाखा पर
तेरे वजूद पर प्रश्न चिन्ह रख घूमता फिरा पागल बन
सक्षमता की बना तू इसी राही की
सूक्ष्मता में गूल हुआ गुलशन बहारी पर
खतरा भाप तू अपने मायूष मन से.
आस-पड़ोस को को व्यंग ब बन खिला रहा
औकात तुम पर हावि बन राजी थी
सौगात तुमने हावि रख हुनर की भाजी थी
नापसन्द की उम्मीद पर नाजायज काम से
आज में बेरोजगारी पर सवार हूँ
भारत कुमार सोलंकी