में और मेरी बुढ़िया
घर का नाम है मधुबाला,
प्यार से कहता हूं बाला।
जब जब वह आती है,
खुल जाता दिल का ताला।।
जब जब घंटी मै बजाता,
दौड़ी दौड़ी मेरे पास आती।
इससे पहले मै कुछ कहता,
वह मंद मंद है मुस्काती।।
वह भी मुझसे प्रेम करती,
मै भी उससे प्रेम है करता।
वह शादी के पवित्र बंधन को
जी जान से खूब है निभाती।।
वह है मेरी राम कटोरी,
मै हूं उसका राम कटोरा।
जब दोनो आपसे में मिलते,
खाते है रबड़ी का एक कटोरा।।
आती है जब उसकी सहेली
नाम है उसका चंपा चमेली।
जब जब वो मेरे घर आती,
लगती है मुझे नव नवेली।।
उससे खूब वह है बतयाती,
अपने मन की बाते सब कहती।
मेरी बुराई कभी नहीं करती।
मुझको वह अच्छा बताती।।
जब कभी बुखार मुझे आता,
वह थर्मामीटर लेकर है आती।
बुखार अगर हो कही ज्यादा,
वह तुरंत डॉक्टर को बुलाती।।
जब कभी अनबन हो जाती,
वह मुझे तुरंत मनाने आती
मै भी तुरंत ही मान जाता।
फिर एक दूजे को गले लगाते।।
ये जीवन की है अंतिम पारी,
अब ऊपर चलने की है तैयारी
कब एम्पायर आउट हमे करदे,
चलने की कर रहे हम तैयारी।।
देखो ये कितना अपनापन है
यही तो जीवन का एक अंग है
कहता हूं सब बूढ़े बुढियो से,
यही तो जीने का एक ढंग है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम