मेंढकी का घमंड
सुबह का समय था । अभी-अभी सूर्योदय हुई थी।सूर्य की हल्की हल्की रौशनी से लोगो को नई ऊर्जा मिल रही थी।आज आजतक से तेज बारिश और आंधी आने के बाद मौसम पूरा साफ हो चुका था।
सुबह सुबह ही एक आदमी टहलते हुए नदी किनारे पहुंच गया । अचानक उसकी नजर एक रोते हुए मेंढकी पर गई। वह बहुत उदास थी और बस रोए जा रही थी।तभी उस आदमी ने उससे रोने का कारण पूछा।
मेंढकी ने बताया-ये पास में बैठी मेरी बेटी है जिससे मैं बहुत नफरत करती थी और ये जो मृत पड़ा हुआ है ,मेरा बेटा है।
मैं अक्सर अपनी बेटी को डांट फटकार करके नदी से पानी लेने तथा अन्य काम से यहाँ भेजा करती थी क्योंकि मैं उसे घर में नहीं देख सकती थी। जिससे इसने नदी में रहना ,तैरना आदि सबकुछ सिख लिया था ।मैं हमेशा से इससे नफरत करती रही हु।
मैं अपने बेटे को हमेशा सीने से लगाए रखती थी ताकि वह मुझसे कभी दूर न हो । जिससे मेरा बेटा नदी के बारे में कुछ सिख ही नही पाया।मुझे अपने बेटे पर घमंड था कि मैं उससे कोई काम नहीं करवाती और वह काफी बलशाली है।
हम तीनों आज नदी आये हुए थे।मेरा बेटा अकेले नदी किनारे पर ही था ।और मैं और मेरी बेटी नदी में आये हुए थे ।तभी अचानक नदी में तेज लहरों के कारण वह बहकर यहाँ पंहुच गया तथा पानी मे न रहने की आदत होने के कारण वह इसे झेल नही पाया और दम तोड़ दिया।इतना कहकर मेंढकी और जोर जोर से रोने लगी।आदमी भी काफी दुखी हुए और उदास मन से अपने घर लौट आया पर आज उसे इस बात की बहूत खुशी थी कि उसने आज सुबह सुबह बहुत कुछ सीखा है।
नैतिक-संघर्ष ही आपको जीवन जीने के लिए बेहतर बनाता हैं।इसलिए संघर्ष करते हुए अपनी जिंदगी खुशहाली से जिये।धन्यवाद।
द्वारा-खुशबू खातून
प्रिय पाठकगण!!आप सब से निवेदन हैं की आप सभी इस कहानी पर प्रतिक्रिया जरूर दे ।बहुत बहुत सुक्रिया आप सभी को।