मृत्योत्सव
रामवन गांव में एक सरल चित आदमी राम भजन रहते थे।वे एक गृहस्थ थे। परिवार में पत्नी राम सखी के अलावा एक बेटा देवानंद, पुत्र वधू शांति, पोते विरू और विक्रम था। पांच बेटियां निर्मला, उर्मिला, प्रमिला, शर्मिला और शीतला थी। सभी की शादियां हो चुकी थी। सभी अपने ससुराल में रहती थी। बड़ा ही खुशहाल परिवार था।
रामभजन विधुत विभाग में लाइन मैन थे।वे कबीर पंथी थे। लोग उन्हें साहेब कहके पुकारते थे। सरकारी ड्यटी के बाद अपने कबीर पंथी साथियों के साथ भजन कीर्तन करते रहते थे।
घर पर भी साहेब ढोलक,झाल , करताल और हारमोनियम रखते थे।शाम में अपने ग्रामीण कबीर पंथी साथियों को बुलाकर कबीर के पदों को गाया करते थे। अपने हारमोनियम बजाते थे।राम स्नेही ढोलक तो राम किशुन और श्याम बिहारी झाल एवं राम तलेवर करताल बजाते थे।कीर्तन सुनने के लिए पांच दस आदमी और जमा हो जाते थे।कीर्तन दो घण्टे तक चलता रहता था।कीर्तन के बाद लोग अपने अपने घर चले जाते थे।यह नित्य दिन का कार्यक्रम था।
समय अपनी गति से चलता रहा। साहेब की पत्नी राम सखी बीमार हो गयी। सीतामढ़ी में डाक्टर से चिकित्सीय जांच कराया गया।पेट में अल्सर पाया गया।रामसखी खाट पकड़ ली। पुत्र देवानंद, पुत्र वधू शांति तथा खुद साहेब ने खुद सेवा सुसुर्षा किया।मां की बीमारी की समाचार सुनकर पांचो बेटियां भी मैके आ गई। सभी ने अपनी मां की खुब सेवा की। लेकिन रामसखी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। दिनानुदिन स्वास्थ्य बिगड़ता गया। कीर्तन सब दिन होता रहा।
आज रामसखी इस लोक को छोड़ परलोक चलीं गईं। सभी बेटियां , एक मात्र बेटा देवानंद, पुत्र बधु शांति और पोते दहारे मार कर रो रहे थे। लेकिन साहेब राम भजन आनंदित थे।वे अपने साथियों को बुलाकर कीर्तन करने लगे। यहां तक कि साहेब नाचने लगे। लोगों की भीड़ लग गई थी। कुछ लोग तो यह भी कहने लगे कि रामभजन पगला गए हैं।
अचानक साहेब बोलें-देवानंद। आज रोने का समय नहीं है। आज खुशी मनाने का दिन है। आज तुम्हारी मां अपने सच्चे घर को चली गई है।आत्मा अपने परमपति परमात्मा से मिलने चली गई है।यह विछुड़न नहीं मिलन का समय है। मृत्यु सच्चे मिलन का उत्सव है। आज तुम्हारी मां का मृत्योत्सव दिवस है। यही सत्य और सतनाम है।चले हमलोग इनकी विदाई करें।
हरे बांस से विमान (फरकी) बनाया गया। उसे फूलों से सजाया गया।उधर एक बेटी उर्मिला अपनी मां के लिए वस्त्र सी कर तैयार कर चुकी है। और बेटी और बहू मां को स्नान कर तैयार कर रही है। और नव वस्त्र पहना रही है। उनकी हाथों और पैरों की उंगलियों के नाखूनों को रंग रही है। पैरों में महावर लगा दिया गया।
सभी खुश और आनंदित है। कोई नहीं रो रहा है। अब
रामसखी को विमान पर लिटा दिया गया। फूलों से ढंक दिया गया। लेकिन चेहरा दिखाई दे रहा है। विमान को चार लोगों ने उठा रखा है। पीछे-पीछे कीर्तन हो रहा है। साहेब रामभजन स्वयं हारमोनियम पर गा रहें हैं –एक दिन खोंतवा से सुग्गैइ उड़ जाइ।
सभी बराती आम के बगीचे में पहुंच चुके हैं। वहां राम परीक्षण समाधि के लिए गढ्ढे खोद चूका है।गढ्ढे में रामसखी को समाधि की स्थति में बैठा दिया गया। सबसे पहले साहेब रामभजन ने रामसखी की आरती उतारी। फिर देवानंद, पुत्र वधू शांति सभी बेटियां, पोते और परिजनों ने आरती किये।इस बीच घरियाल बजते रहे। कीर्तन होता रहा। फिर गढ्ढै को आहिस्ता आहिस्ता मिट्टी से सभी लोगों ने भर दिया। साहेब राम भजन बहुत खुश थे। साहेब बोले-मृत्यु दु:ख नहीं उत्सव है। आज हमलोग मृत्योत्सव मनायें।
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आचार्य रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।
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