मृत्यु भेंट
आज अभिषेक के पिताजी की मृत्यु भोज थी । जो लंबे समय से चल रही किसी लाईलाज बीमारी से हो गई थी । घर मे चूल्हा भी बड़ी मुश्किल से जल पाता था । माँ दुसरो के घर बर्तन मांजने का काम करती थी । जिससे थोड़ी बहुत आमदनी होती थी । वो सब अपने पति के इलाज में खर्च कर देती थी ।
गांव में पुरानी परंपरा थी कि “मृत्युभोज” देना अनिवार्य था । किंतु एक असहाय माँ के पास इतनी व्यवस्था न थी । इसलिए दोनों माँ – बेटे आज बहुत गहरी सोच में डूबे हुए थे कि मृत्यु भोज हेतु सामग्री कैसे लाये ?
घर के आंगन में कुटुम्ब के लोग, तथा गांव के लोग इकट्ठा हो रहे थे । दोनों को बुलाया गया ।
“मेरे गांव के लोगो मैं बहुत असहाय हु, मजबूर हु । मैं मृत्युभोज की व्यवस्था नही कर पाई मुझे माफ़ कर दो ।
इतने में पंच में से ग्राम के मुख्य सरपंच ने आगे बढ़कर कहा कि
” हा हम आपकी स्थिति से परिचित है । इसलिए जो वर्षो से चली आ रही रीति का आज हम खंडन करने आये है ।”
“कैसी रीति का खंडन सरपंच जी? ”
“पहले आप दोनों माँ – बेटे यहां बैठो”
दोनों माँ – बेटे बिछे हुए आसन पर बैठ गए । सरपंच साहब ने घोषणा कर दी कि कार्यक्रम आरम्भ किया जाए ।
इतना सुनते ही सभी लोग आगे आये और दोनों मा बेटे को किसी ने कपड़े भेंट किये, किसी ने एक माह का राशन, किसी ने नगदी ।
अंत मे सरपंच साहब आगे बढ़कर सभी के समक्ष घोषणा की कि आज से मृत्यु भोज की जगह जिसके घर मे मृत्यु हुई है । मृतक के परिजनों के लिए समस्त ग्राम की ओर से मृत्यु भोज की जगह “मृत्यु भेंट” कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा । ताकि आगे चलकर किसी असहाय परिवार के लालन पालन में कोई बाधा न हो ।।
गोविंद उईके