मूर्ति
मोहन दस साल का हो गया था, गरीब किसान का बेटा था। उसके गाँव से लगता हुआ जंगल था। मोहन का मन स्कूल में नहीं लगता था, इसलिए वहअक्सर स्कूल जाने की बजाय जंगल चला जाता था, और स्कूल समाप्त होने का समय होता तो घर लौट आता था। मास्टर जी भी कभी कभी ही स्कूलआते थे, इसलिए उसके माँ बाप को इस विषय में कुछ विशेष जानकारी नहीं थी कि उनके पुत्र के जीवन में क्या चल रहा था ।
गाँव के बच्चे उसका मज़ाक़ बनाते थे क्योंकि वह चलता कम और गिरता ज़्यादा था, उसकी नज़र हमेशा आसमान में लगी रहती, न वह गेंद पकड़ पाता, नतेज भाग पाता, और बात करता तो इतना तेज बोलता कि आधे शब्द समझ ही नहीं आते ।
एक दिन वह जंगल में घूमते घूमते बहुत दूर निकल गया, वापिस आते आते तूफ़ान घिर आया, वह बारिश में भीगता, मिट्टी में लथपथ पाँव लिये किसी तरहघर पहुँचा, सुबह उठा तो उसे तेज बुख़ार था, वह कई दिन बुख़ार में घर पड़ा रहा, उसने देखा, उसकी माँ कितनी मेहनत करती है, वह जब भी मां की मददकरने की कोशिश करता, माँ कहती ,”पहले ठीक तो हो जा, फिर मदद करना । “
फिर एक दिन ऐसा भी आया वह भला चंगा हो गया, अब वह मां की मदद करने की कोशिश करता तो माँ कहती, “ जा खेल ।” वह खेत जाता तो बापूकहता, “ जा स्कूल जाकर पढ़ ले। “ परिणाम यह हुआ कि वह फिर से गलियों में घूमते घूमते जंगल आ पहुँचा। जंगल आकर उसका मन शांत हो गया ।वह घंटों कभी हाथियों को निहारता , कभी अंडे में से चूज़े निकलते हुए देखता, कभी बंद पड़ी कली को यकायक खिलते हुए , वह देख रहा था , पानीहमेशा अपना रास्ता बना लेता है, पक्षी हमेशा ज़मीन पर लौट आते हैं , कोबरा माँ भी अपने अंडे की रक्षा करती है, उसकी दाड़ी आ रही थी, आवाज़ बदलरही थी, वह पूरी प्रकृति में मिथुन देख रहा था, जन्म, मृत्यु, शैशव, बुढ़ापा, जिजीविषा का संघर्ष सब उसके समक्ष नृत्य कर रहा था । बिना किसी स्कूलगए वह जीवन को समझ गया था, उसका संसार अनंत हो उठा था । जीवन में पहली बार उसे लगा, उसे बहुत कुछ कहना है, उसके भीतर तूफ़ान है, जोफटना चाहता है ।
मोहन बदहवासी सी हालत में भागता भागता घर पहुँचा । माँ शाम के खाने के लिए अंगीठी जला रही थी, उसकी आँखें धुएँ से भरी थी, फिर भी मोहन कोजल्दी घर आया देख उसका चेहरा खिल उठा, मोहन वहीं माँ के पास बैठ गया, और जंगल की बातें करने लगा, माँ उसकी बातें पूरे मनोयोग से नहीं सुन पारही थी, पर मोहन को इसका होश नहीं था, जहां जहां माँ जाती, वह पीछे पीछे लगातार बोलता जाता, इतने में बापू भी आ गए , अब मोहन का उत्साहऔर भी बढ़ गया, परंतु दिन भर के थके हारे उसके माँ बाप बहुत देर तक उसकी बात नहीं सुन पाए, और जल्द ही सो गए ।
मोहन देर रात तक जागता रहा, कभी वह मन ही मन सितारों से बात करता, कभी अपने आप से, उसकी आँखों में एक नई रोशनी थी, जो पूरी सृष्टि में नएअर्थ देख रही थी ।
अगली सुबह वह उठा तो उसमें एक नई उमंग थी, अचानक उसकी नज़र आँगन में पड़ी छेनी और हथौड़े पर पड़ी। उसने अनजाने ही उन्हें उठा लिया औरजंगल की ओर चल दिया । चलते चलते वह नदी किनारे पहुँचा, वहाँ अनेकों जानवर अपने अलग अलग झुंडों में खड़े थे, सब कुछ कितना भव्य था, शामको पक्षी अपने घोंसलों में लौटने लगे तो वह मुस्करा दिया, उसे लग रहा था वह इन सबका हिस्सा है, उस रात वह घर नहीं लौटा। उसने देखा नदी किनारेसंगमरमर के बहुत बड़े पत्थर पड़े हैं, वह सहज ही उनके ऊपर अपना हाथ घुमाने लगा, देखते ही देखते एक बड़ा सा पत्थर उसे पसंद आ गया, बहुत देरतक वह उसे महसूसता रहा, फिर अपना हथौड़ा और छेनी उठाकर वह उस पर चोट करने लगा, चाँदनी रात थी और वह मदहोश सा उसे तराशता रहा।उसके बाद कई दिनों तक यही सिलसिला रहा, वह तब तक तराशता जब तक थक नहीं जाता, या भूख प्यास के कारण उसे रूकना नहीं पड़ता । कभीजंगल के फल तो कभी पत्ते खाकर निर्वाह करता रहा, प्यास लगती तो हथेली की अँजुरी बना नदी से पानी पी लेता । फिर एक दिन ऐसा आया उस पत्थरमें से चेहरा उभरने लगा, फिर हाथ पैर और एक दिन वह मूर्ति तैयार हो गई , उसे देख वह इतना भाव विह्वल हुआ कि वह उसे उठा गाँव की ओर दौड़ा ।
घर पहुँचा तो माँ बापू उसे देखकर ख़ुशी से झूम उठे, कुछ दिन की खोज ख़बर के बाद वह यह मान बैठे थे कि शायद मोहन किसी जंगली जानवर काशिकार हो गया । उन्होंने देखा उनका बेटा एकदम शांत हो गया है, उसके चेहरे पर एक सौम्यता उभर आई है। मूर्ति देखने दूर दूर से लोग आने लगे ।उसकी मूर्ति की चर्चा ज़मींदार तक भी पहुँची, ज़मींदार देखते ही समझ गया कि यह कोई साधारण मूर्ति नहीं है। उसने मोहन से उसे ख़रीद कर राजा कोउसे ऊँचे दामों पर बेच दिया ।
राजा ने उसे अपने शयनकक्ष में रख दिया, और पत्नी से कहा, “मैंने इससे सुंदर कभी कुछ नहीं देखा, “ रानी ने कहा, “ हाँ मनुष्य में जो भी सुंदर है वह सबइसमें है। “
“ और वह क्या है ? “ राजा ने पूछा
“ स्नेह, जिज्ञासा,साहस । “
“ हाँ , और इन सबसे बड़कर एक , भोलापन । मैं चाहता हूँ रोज़ सुबह जब मैं जागूँ तो सबसे पहले इसे देखूँ । “
“ ज़रूर ।” रानी ने कहा और श्रद्धा से उसने उस मूर्ति के समक्ष अपना सिर झुका दिया।
शशि महाजन- लेखिका