मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
व्हाट्स ऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक में नहीं, खतों में इज़हार ए इश्क़ करना है,
पुरे हफ्ते के रगड़े के बाद मूझे शनिवार की उस शाम का इंतजार करना हैं और कॉल में तुम्हारी आवाज़ को फ़िर से सुनना है,
छुट्टियों का इंतज़ार करना है, ट्रैन में बैठ कर तुमसे मिलने की बेचैनी में फ़िर से बेचैन होना है,
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना है,
फॉल इन से शुरू और फॉल इन में ढलती हुई वो रातों में दोस्तों के साथ “अकॉमडेशन C” में बैठ तुम्हारा ज़िक्र करना है,
तुमसे झगड़ना है तुम रूठो तो एक बार और तुम्हें मनाना है, उन यादों को उन लम्हों को फ़िर से जीना है,
अक्सर तुम एक गुन-गुनाती थी (अभी ना जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं) इस गीत को एक बार फ़िर तुमसे सुनना है,
“हाँ सिर्फ़ तुमसे ही”
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना है…!
“लोहित टम्टा”