मुफ़लिसी
मुफ़लिसी में जीते और मुस्कुराते हुए,
ऐसे क़िरदार मेरे दिल से टकराते हुए,
तुम पूछते हो हाल मुझसे क्या उनका,
एक ही चादर में कई पावँ फैलाते हुए,
कफ़स से बाहर मज़लूम कैसे निकलें,
पावँ काट देते बाहर चादर से आते हुए,
जगह क़ैद करते घर से भी बेघर करते,
मजबूर लोग हैं फुटपाथ पर आते हुए,
जिनकी बदौलत रौशन जहां रौनक है,
गुजारते जिंदगी ठंड में कपकपाते हुए,
आवाज़ देता हूँ वीरान सी सड़कों पर,
खुद को पाता हूँ बहुत सकपकाते हुए,
वो जिनकी मदद के लिये निकला था मैं,
लाशें बिछ गई हैं भूख से मर जाते हुए,
मुफ़लिसी की कहानी मिटती नहीं कभी,
लोग मिट जाते हैं वफादारी निभाते हुए,