मुक़म्मल कर इश्क़ तू
तेरी यादों के घेरे
मुझें दिन रात सवेरे
क्यूं तड़पाते हैं इस क़दर
ये हर लम्हात ये हर पहर
ये क़दम जवां हैं मग़र कहाँ है
चल चलें रहगुज़र
तेरे आशिये से निकल तू
मेरे साथ साथ चल तू
मुक़म्मल कर इश्क़ तू
मुसलसल कर इश्क़ तू…………
भूल नहीं सकता मैं
बहारों के सफ़र वो
भूल नहीं सकता मैं गुज़रे पहर वो
आ जा बनकर सहर
रंगीली धूप सा छनकर
पानी की बूंद सा बनकर
चल चलें रहगुज़र
सुबह की ओस सा पिघल तू
मुक़म्मल कर इश्क़ तू
मुसलसल कर इश्क़ तू………
………………..
~अजय “अग्यार