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1 Jun 2017 · 1 min read

मुहब्बत

“मुहब्बत”
दिखा जो चाँद नूरानी तिरे दीदार को तरसा।
सजाकर ख़्वाब आँखों में तसव्वुर यार को तरसा।
मुहब्बत ने किया घायल हुआ दिल आज पत्थर है।
किया कातिल निगाहों ने जहां में प्यार को तरसा।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
218 Views
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