” मुस्कानें हैं खोई खोई ” !!
कहीं सोच में डूबे डूबे ,
मुस्कानें हैं खोई खोई !!
कदम मिलाकर साथ चले तो ,
कभी डगर अनजान मिली है !
जिन सपनों को बुन डाला था ,
उनमें मानो ठगी मिली है !!
ख़ुशी कभी आंखों से छलके ,
कभी लगे हैं धोई धोई !!
परिवर्तन का दौर निराला ,
मुश्किल इससे बच पाना है !
धकियाता है समय हमें बस ,
संग हवा के बह जाना है !
शीशमहल सपनों के टूटे ,
उम्मीदें फिर बोई बोई !!
जाग रहे हैं , सोये ना हैं ,
नींद उड़ी है आँखों से अब !
कल की चिंता आज सताये ,
आज ढा रहा यहाँ है गज़ब !
हिम्मत ऐसी गले लगाई ,
थकन खूब है ढोई ढोई !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )