मुसीबत में घर तुम हो तन्हा, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना
मुसीबत में गर तन्हा हो तुम, फिर भी निराश तुम नहीं होना।।
तुम अपने आँसू बहाना नहीं, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना।।
मुसीबत में गर तन्हा हो तुम——————–।।
यह तो रीति है लोगों की, दौलत से वो प्यार करते हैं।
बातें वफ़ा की ये करने वाले, अपने चेहरे बदल लेते हैं।।
जख्म गर किसी ने तुम्हें दिया हो, कभी तू हताश नहीं होना।
तुम अपने आँसू बहाना नहीं, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना।।
मुसीबत में गर तन्हा हो तुम——————-।।
इन ऊँचे महलों को देखकर, मत करना विश्वास तू इन पर।
कर देंगे तुमको बर्बाद ये लोग, छुपाना पड़ेगा तुम्हें मुँह उम्रभर।।
गर कोई चाहे तुम्हें बदनाम करना, उस शातिर से तू मत घबराना।
तुम अपने आँसू बहाना नहीं, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना।।
मुसीबत में गर तन्हा हो तुम———————।।
तुमको सफर में गर नश्तर मिले, या किश्ती डगमगाये लहरों से।
चाहे सामना हो तेरा पर्वतों से, या बुझ जाये दीपक बयारों से।।
ऐसे में गर कोई साथ नहीं दे तो, जिंदगी को तू नहीं खोना।
तुम अपने आँसू बहाना नहीं, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना, मैं हूँ ना।।
मुसीबत में गर तन्हा हो तुम———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)