मुसाफिर
मुसाफिर
य़ह संसार मुसाफिरखाना।
लगा हुआ है आना जाना।।
कोई आता कोई जाता।
कोई रोता कोई गाता।।
सभी मुसाफिर एक समाना।
सभी सुपरिचित,नहीं बहाना।।
उन्हें पराया नहीं समझना।
इनसे मिलजुल कर के रहना।।
भेदभाव को त्याग मुसाफिर!
सबको अपना जान मुसाफिर!!
जीवन को चैतन्य बनाओ।
सबको यही बात बतलाओ।।
मिलन वियोग यहाँ चलता है।
सुख दुख सदा यहाँ दिखता है।।
सम्वेदना न मरने पाये।
द्वेष कलह का भाव मिटाये।।
क्षण भंगुर यह जग का मेला।
नहीं समझना कभी अकेला।।
हाथ मिलाते चलते रहना।
नहीं राह से कभी भटकना।।
य़ह जीवन अनमोल सफर है।
स्वच्छ हृदय का भव्य शहर है।।
सभी मुसाफिर अपने परिजन।
हो सब के प्रति दिव्य धवल मन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।