मुसाफिर हूँ यारो
मुसाफिर हूँ मैं यारो।।
ये देश है बेगाना।।
कब राह होगी खत्म
पता हो तो बताना।।
बांधता हूँ पुल रोज मैं ।
करूं मंज़िलों की खोज मैं ।
पर अनजान मुझको
कदम ही है बढ़ाना।।
मुसाफिर हूँ मैं यारो।।
ये देश है बेगाना।।
जिंदा हूँ मैं यह होश है।
कुछ कर्मों पे अफसोस है।
फिर भी जानबूझ के
माया से ठगते जाना।।
मुसाफिर हूँ मैं यारों।।
ये देश है बेगाना ।।
ठोकर लगे है हर कदम।।
पास दिखे न वो सनम।।
सोचते-सोचते ही
चला हूँ मैं दिवाना।।
मुसाफिर हूँ मैं यारो ।।
ये देश है बेगाना ।।
सुखी हूँ या कि रूठा हूँ ।
इंसान नहीं झूठा हूँ ।
अंजाम हो कुछ मगर
कर्मवीर है कहलाना।।
मुसाफिर हूँ मैं यारो ।।
ये देश है बेगाना ।।
।।मुक्ता शर्मा ।।