मुसाफिर लौट घर चले
**** मुसाफिर लौट घर चले ****
**** 2212 2212 212 *****
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हम हैं मुसाफिर लौट कर घर चले,
अब छोड़ कर तेरा वतन दर चले।
तेरे बिना जीना न मुमकिन सनम,
तुम जो नहीं हो पास हम मर चले।
बेजान पुतले आम जलते रहे,
छोड़ी यही पर बात खुद डर चले।
गर चाहते तो लूटते हम तुझे,
मौका मिला जो था गवाकर चले।
वीरान राहें तो हमे अक्सर मिली,
वादों भरी कसमें हमीं हर चले।
नादान मनसीरत बुरा ही सही,
शूलों भरी मुश्किल डगर पर चले।
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सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)