मुसलसल छोड़ देता हूं
मुसलसल छोड़ देता हूं
वो रस्ते तर्क करता हूं, वो मंज़िल छोड़ देता हूं,
जहां इज़्ज़त नहीं मिलती, वो महफ़िल छोड़ देता हूं।
मुझे मांगे हुए साए हमेशा धूप लगते हैं,
मैं सूरज के गले पड़ता हूं, वो बादल छोड़ देता हूं।
न मुझे झूठी तसल्ली, न फ़रेबों का सहारा है,
जो दिल पर बोझ बन जाए, वो हासिल छोड़ देता हूं।
किसी से ताल्लुक़ यूं नहीं रखा, कभी रखा कभी छोड़ दिया,
मैं जिसे छोड़ देता हूं, उसे मुसलसल छोड़ देता हूं।
मुझे चाहिए सफ़र, जहां खुदा का नूर बरसे,
जो मंजर दिल दुखाए, वो मंज़र छोड़ देता हूं।
सच की राह पकड़ ली है, चाहे कांटे चुभें कितने,
जो सच का साथ न दे सके, वो क़ाफ़िल छोड़ देता हूं।