मुरादाबाद और लाॅकडाउन।
कुछ ही महीने हुए थे कि मेरा छोटा भाई देहरादून से मुरादाबाद आ गया और अपनी पत्नी और बेटी के साथ मानसरोवर कॉलोनी में रहने लगा,मैं सिर्फ एक दिन के लिए यानी 21 मार्च,2020 को यहां अपने भाई का पासपोर्ट देने आया था दरअसल उसे पासपोर्ट का नवीनीकरण कराना था 23 मार्च को, योजना यही थी कि हम सब उसी दिन शाम को वापस अपने घर बरेली चले जायेंगे,क्योंकि अब भाई का कार्यकाल भी मुरादाबाद में लगभग ख़त्म हो चुका था, लेकिन नियति शायद कुछ और ही सोचे बैठी थी, केवल एक जोड़ी कपड़ों के साथ मैं यहां आया, उसके बाद वक्त और कुदरत ने ऐसी करवट ली कि देखते ही देखते दो महीने(22 मार्च-22 मई )बीत गये,देश-दुनिया के हालात लगातार बिगड़ रहे थे ,हम लोग अपनी जगह पे बिल्कुल सुरक्षित थे ,किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।
ये ज़रूर था कि जैसे-जैसे लाॅकडाउन की अवधि बढ़ रही थी ,बरेली में हमारे माता-पिता कि चिंता भी बढ़ रही थी, शुरू के दो चार दिन तो मन मानो ऊब जाता था, दरअसल मैं काम के सिलसिले में पहले भी कुछ महीने( नवम्बर 2017-मई 2018)इस शहर में रह चुका था और यहां कभी लौट के नहीं आऊंगा,कई बार ख़ुद से ये कह चुका था,वैसे मेरा मुरादाबाद का अनुभव बुरा नहीं था पर क्या पता था कि दुबारा यहां आऊंगा भी तो इतने मुश्किल हालात में, हांलाकि ये ज़रूर कहूंगा कि हंसते-खेलते दो महीने कब गुज़र गए पता ही नहीं चला।
मैं,मेरा भाई और उसकी पत्नी, हम सभी बैठ के गप्पे मारते, शाम को सामने के पार्क में थोड़ी देर टहलते या कभी बैडमिंटन खेलते तो कभी-कभी बीती यादें ताज़ा करते और सबसे अहम बात ये की कविता लिखने का शौक तो जैसे कहीं खो गया था, इस दौरान कविताओं का ऐसा सिलसिला शुरु हुआ कि अच्छी बुरी जैसी भी रही पर रोज़ एक कविता लिखी।कुल मिलाकर ये लाॅकडाउन मुरादाबाद से भी एक अच्छा नाता जोड़ गया,अब तो हम सभी यहां से वापस आ गए और अब कभी यहां आना होगा या नहीं ये नहीं कह सकता, हाँ लेकिन अब फिर कभी नहीं कहूंगा कि अब यहां कभी नहीं आऊंगा, और अंत में बस इतना ही कि,
दुआ निकलेगी दिल से हमेशा,जब भी करूंगा याद,
हर मौसम में आबाद रहे,शहर ये मुरादाबाद।
– अंबर श्रीवास्तव