मुरली की धू न…
बृज की बात ये ,बृज के ग्वाल बाल, बृज की हर.. नार ..पे प्रीत लुटावत् है
बार बार बृषभानुजा करे.. मनुहार .. बार बरबस मंद मंद मुस्कावत है
मायाधीश करे माया ..माय यशुमति को मनावत है,
बन सहज बोरी बतियावत है ,
गोपियां संग लाड लडावत, ग्वाल संग दधि चुरावत है
खीजे गोप ग्वालिन गिरधर , गुपचुप रिस दिखावत हैं
गांव गांव गोविंद ग्वाल ग्वालिनी संग मुरली की टेर लगावत लीला रचावत है,मुरली की धुन हो के विधुन..
स बै गोप गोपा ..सुध बुध बिसरावत है
अश्रु