मुमताज़
संस्मरण
उस शाम वह अपने पति के साथ फिर मुझे दिखाने आई वही उदास सा चेहरा अधेड़ उम्र और तमाम लक्षणहीन तकलीफ़े बताने लगी – यहां दर्द वहां दर्द अजीब सी सनसनाहट , झनझनाहट , जिस्म में आग सी ,बदन दर्द सर दर्द इससे पहले भी कई बार वह मुझे इन्हीं तकलीफों के लिए दिखा चुकी थी लेकिन मैं समझता था कि उसकी परेशानियां कहीं और हैं । इस बार भी मैंने उसे समझा-बुझाकर तसल्ली देते हुए कुछ दवाइयां लिख दीं और चलते समय उससे पूछा
‘ तुम किसी बात से परेशान तो नहीं रहती ? ‘
वह बोली
नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं है मैंने फिर उसके शौहर की तरफ देखते हुए पूंछा कि तुम्हें इनसे तो कोई परेशानी कोई तकलीफ नहीं रहती ।
वह मुस्कुराई और बोली
‘ नहीं यह तो मुझे बहुत चाहते हैं बहुत प्यार करते हैं मुझे खिलाते हैं पिलाते हैं घुमाते फिराते हैं पिक्चर दिखाते हैं । मूझे डॉक्टर को दिखाने की फीस देते हैं मेरे लिए दवा खरीदते हैं । यह देखो यह नया सलवार सूट अभी खरीद के दिया है जो मैं पहन कर आई हूं । फिर कुछ देर बाद संकोच कर के बोली
‘ हां कभी – कभी मुझे जुतिया देते हैं , जैसे कि कल शाम को ‘
जिस प्रकार लठ से लठियांना , थप्पड़ से थपड़ियाना उसी तर्ज पर जूते से जुतियाये जाने का भेद समझ कर मैंने साथ आये पति पर विवेचनात्मक दृष्टि डाली वह बेशर्मी से तटस्थभाव लिए खड़ा था । उस नारी के विषाल निश्छल मन प्रांगण में चरता उसका पति हिंसक पशु स्वरूप मेरे सामने खड़ा था ।घरेलू हिंसा का ये कोई नया मामला मेरे सामने नहीं था ।
मैंने सोचा इसकी कहानी भी कुछ कुछ शाहजहां की मुमताज के जैसी ही है । यह भी सुना था कि हर दिल में एक मुमताज रहती है पर क्या सदियों से वो ऐसे ही प्रताड़ना भोगती हुई रहती चली आ रही है । सुना है शाहजहाँ ने भी उसके चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय मुमताज़ की मृत्यु होने जाने के कुछ दिनों के बाद उसकी छोटी बहन के पति को मरवा कर उससे शादी कर ली । इसके बाद भले ही तुम उसकी याद में प्यार के नाम का ताजमहल खड़ा करो और अपने तत्कालीन दरबारी इतिहास कारों से अपनी प्रशंसा करवाओ या वर्तमान में सलवार सूट ला कर दो हर काल में तुम्हारा ये पशुवत व्योहार निंदनीय एवम दण्डनीय रहे गा ।