#मुबारकां_जी_मुबारकां
#मुबारकां_जी_मुबारकां
■ बन ही गए आख़िर विश्व-विजेता
◆ चीन को पछाड़ा, झंडा गाढ़ा
◆ 142 करोड़ पार हुए इंडियंस
【प्रणय प्रभात】
आख़िरकार आज मिल ही गई वो ख़ुश-ख़बरी, जिसके लिए कान बेताब थे। जी हाँ, आज भारतीयों ने अपार पराक्रम और पुरुषार्थ का परिचय देते हुए विश्व-पटल पर उस बड़ी कामयाबी का परचम फहरा दिया, जिसकी दुनिया का कोई देश कल्पना तक नहीं कर सकता। यही नहीं, हमने अपने धुर-विरोधी और चिर-प्रतिद्वंद्वी दुष्ट चीन को भी चारों खाने चित्त कर दिया, जो एक अरसे से अपने वर्ल्ड-रिकॉर्ड पर इतरा रहा था।
हमने चंद बरसों की कड़ी मेहनत के बाद उससे दुनिया के सबसे बड़े देश का तमगा छीन लिया। वो भी आज़ादी के अमृत-काल में, अभावों और आपदाओं का विष घूंट-घूंट पीते हुए। साधन-संसाधन मिले होते, तो यह कारनामा हम और भी पहले अंजाम दे सकते थे। भला हो तीन साल पुरानी महामारी और दो साल की सिमटी हुई ज़िंदगी का, जिसने हमें भरपूर फुरसतें मुहैया कराईं और हमने घटती हुई आबादी का तोड़ निकालते हुए जन्म-दर की लाठी से मृत्यु-दर की कमर तोड़ डाली। कुदरत ने लाखों छीने और हमने उनकी भरपाई करोड़ों को आसमान से ज़मीन पर उतार कर पूरी कर दिखाई।
देर से ही सही मगर सही समझे आप। आज हिंदुस्तानी कुटुम्ब पड़ोसी चीन को 29 लाख क़दम पीछे धकेल कर पहले पायदान पर आ गया। यह अहसास भी “विश्व-गुरु” बनने से कम नहीं। फ़िल्मी गीतकार ने “सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी” लिखते हुए शायद ही सोचा होगा कि आपदाकाल से जूझते जुझारू देशवासी उसकी कल्पना को इतनी तेज़ी से धरातल पर साकार कर दिखाएंगे। आज जारी आंकड़ों ने दुनिया में भारत का डंका पीट कर चीन की लंका लगा दी। जो बेचारा आबादी के मामले में 142.57 करोड़ के आंकड़े पर हांप-कर थम गया और हम 142.86 करोड़ का आंकड़ा ताल ठोक कर पार कर गए।
यह महान कारनामा तमाम तरह की झूठी-सच्ची रोकटोक और कथित पाबंदियों के बीच अंजाम देना आसान था क्या…? कोई और मुल्क़ होता तो “टीं” बोल जाता। वो हम ही थे, जो बिना “चीं” बोले विराट लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहे। ऊपर वाले ने ऐसी ही रहमत बरसाई तो और बरक़त तय मानिए। अब चीन तो क्या उसका बाप इस दौड़ में हमें छू नहीं पाएगा। मुफ़्त का अनाज, फ़ोकट का पानी, फ्री की बिजली मिलती रहे बस। सारी दुनिया देखेगी हमारा जलवा। साथ ही शर्मसार होंगे वो नाकारा भी, जो “हम दो, हमारे दो” से भी नीचे गिर कर “हम दो, हमारे एक” पर आ गए हैं और देश की तरक़्क़ी में सहयोग देने को राज़ी नहीं। कल ये “हम दो, हमारे एक” से भी मुकर कर “हम दो, हमारे कुछ हो न हो” पर भी आ सकते हैं। वैसे भी “समलैंगिक विवाह” की आज़ादी मिलने के बाद यह होना ही है। लट्टू जलने के लिए प्लस-माइनस ज़रूरी होता है, सब जानते ही हैं। माइनस से माइनस या प्लस से प्लस के मेल से तो उजाला होने से रहा। यहां तो साली “परखनली” भी “भली” नहीं कर पाएगी। ऐसे में सारी ज़िम्मेदारी “योगक्षेम वहाम्यहम” पर पक्का भरोसा रखने वाले आप-हम जैसे लोगों की है। मतलब “मालिक देता है, बंदा लेता है” वाली कहावत को मानने वालों की। “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:” का मतलब भी यही है शायद। वैसे भी अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार “हराम-हलाल” तय करने की छूट हमें संविधान ने दे ही रखी है।
देश को आज़ादी के 75 साल पूरे होने का तोहफ़ा हम दे ही चुके। अब तैयारी है गणतंत्र के 75 साल और अमृतकाल में इस आंकड़े को डेढ़ अरब के पार पहुंचाने की। ताकि दुश्मन देश आसपास तो क्या दूर-दूर तक न फटक सके। भूमि उर्वरा हो और उत्पादक परिश्रमी तो उत्पादन घटने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। तय मानिए कि अब कोई सवाल पैदा होगा भी नहीं। केवल जवाब ही जवाब पैदा होंगे। और करें भी क्या…? ज़माना ही होड़ा-होड़ी का है। फिर उन प्रेरकों और उत्प्रेरकों की सलाह पर अमल करना भी ज़रूरी है, जो गला फाड़-फाड़ कर आबादी बढ़ाने के मंतर पढ़ कर बांबी में हाथ देने के लिए उकसा रहे हैं रात-दिन।
सरकार भी हर घड़ी उत्पादन बढ़ाने का आह्वान कर रही है। जिनके पास खेती-बाड़ी या फेक्ट्री नहीं उनके पास और चारा भी क्या है, सिवाय इस तरह के ताबड़तोड़ उत्पादन के। वो भी बिना किसी सब्सिडी या सहायता के। ज़्यादा होगा तो “मुझको राणा जी माफ़ करना, ग़लती म्हारे से हो गई” वाला गाना है ही। माल्थस के उकसाने वाले सिद्धांत से प्रेरित कुदरत भड़की, तो गा देंगे सामूहिक रूप से, “हम साथ साथ हैं” की तर्ज़ पर। इससे हमारी “वसुधैव कुटुम्बकम” की नीति प्रगाढ़ होगी। साथ ही भेड़-चाल की दीर्घकालिक परिपाटी भी, जो हमें विरासत में मिली है।
सच्चे भारतवंशी होने का इतिहास दोहराना है तो महाभारत-वंशी महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी की लीक पर चलना ही होगा। जिन्होंने अंधकार से भरे जीवन के विरुद्ध संघर्ष कर आंगन में एक सैकड़ा एक दीप जलाने का साहस दिखाया। धन्य हैं वे शूरवीर जो ऊपर वाले के भरोसे अपना “काम” निष्काम भाव से करते आए हैं। तो लगे रहो मुन्ना भाइयों, देश का मान बढ़ाने में। ध्यान रहे कि धूर्त पड़ोसी दोबारा आगे निकलने में कामयाब न हो जाए। फ़िलहाल मुबारकबाद 125 करोड़, 130 करोड़ का पुराना राग अलापने वालों को भी। एक नया जुमला (142 करोड़ हिन्दुस्तानियों) मिलने के उपलक्ष्य में। मिलकर बोलो-“हिप-हिप हुर्रे…। चक दे इंडिया…। चक दे फट्टे…।।”
★सम्पादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)