मुझ से दो दिन अलग रही है तू
मुझ से दो दिन अलग रही है तू
देख तो कैसी लग रही है तू
हो गया राख जल के मैं लेकिन
धीरे – धीरे सुलग रही है तू
संदीप ठाकुर
मुझ से दो दिन अलग रही है तू
देख तो कैसी लग रही है तू
हो गया राख जल के मैं लेकिन
धीरे – धीरे सुलग रही है तू
संदीप ठाकुर