#मुझे_गर्व_है
#वैयक्तिक_अभिमत-
■ अपने अनारक्षित होने पर।।
【प्रणय प्रभात】
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के एक साधारण नागरिक के रूप में मुझे किसी भारतीय के आरक्षित होने पर कोई आपत्ति नहीं। बावजूद इसके मुझे गर्व है कि मैं अनारक्षित वर्ग से हूँ। मुझे आत्मीय गर्व है कि मैं एक सामान्य वर्ग से सम्बध्द हूँ। मेरे आत्म-गौरव के कारण हैं कुछ तथ्य, जो बिना किसी आग्रह, पूर्वाग्रह या दुराग्रह के प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कुछ इस तरह के विचार-बिंदुओं के साथ :-
● आज मैं जो कुछ भी हूँ अपने व अपने माता-पिता के परिश्रम, परिमार्जित पात्रता, समग्र योग्यता, स्वाध्याय, स्वविवेक व कार्य-कौशल के बलबूते हूँ। किसी जाति या वर्ग विशेष की पहचान देने वाले प्रमाणपत्र के आधार पर नहीं।
● बाल्यकाल से लेकर युवावस्था और प्रौढ़ावस्था तक मैंने अपने संस्कारित स्वाभिमान के साथ सिर उठा कर जीवन की प्रत्येक परिस्थिति से संघर्ष, सामंजस्य व संतुलन का अनुभव प्राप्त किया है। जिसमें सरकारी ठप्पा लगे किसी जाति प्रमाण पत्र का कोई योगदान नहीं है।
● मेरी शिक्षा-दीक्षा मेरे अपने वंश की परंपरा व मान्यता के अनुसार विधिवत हुई है। जिसमें मेरे अभिभावक के पुरुषार्थ से अर्जित धन व साधन-संसाधन का योगदान रहा है। सियासी सौगात के नाम पर किसी खैरात या अनुकम्पा का नहीं।
● मैंने शाला से महाविद्यालय तक प्रवेश बिना किसी जाति प्रमाणपत्र के अपनी वास्तविक आयु और पात्रता के अनुसार पाया है। बिना किसी याचना या संस्तुति के। बिना किसी संस्थान या संस्था-प्रमुख पर संगठनात्मक दवाब बनाए।
● मैंने अपनी शिक्षा में लगने वाले हर प्रकार के शुल्क को एक स्वाभिमानी विद्यार्थी की तरह पूरा-पूरा वहन किया है। आर्थिक आधार पर छूट के वास्तविक पात्र किसी भी निर्धन सहपाठी के विधिमान्य अधिकार पर अतिक्रमण की चेष्टा या धृष्टता किए बिना।
● आज मेरे पास या मुझ में जो कुछ भी है, उसके पीछे मेरा अपना साहस व संघर्ष है। जिसका सरोकार किसी तरह के आरक्षण या प्रमाणपत्र से नहीं है। मेरी हरेक उपलब्धि, सफलता या प्रतिष्ठा का सम्पूर्ण श्रेय मेरे ईश्वर की कृपा, पालकों की जीवटता व सहयोगियों की सद्भावना व शुभकामनाओं को है। किसी राजनेता या अधिकारी द्वारा निर्मित योजना को नहीं।
● मुझे गर्व इस बात पर भी है कि मेरा वास्ता उस समाज से है, जिसने लेखनी व बौद्धिक क्षमताओं के धनी होने के बाद अपनी आजीविका अपनी योग्यता के बूते प्राप्त की तथा एक आदर्श समुदाय के रूप में राष्ट्र या तंत्र के विरुद्ध कोई आंदोलन या प्रदर्शन उग्रता के साथ लामबंद होकर नहीं किया। जो हासिल किया अपनी मेधा के दम पर किया।
● मुझे अनारक्षित श्रेणी की उस इकाई का अंश होने पर गर्व है, जिसने कथित अधिकार पाने, बर्चस्व स्थापित करने और येन-केन-प्रकारेण जीत पाने के लिए न कभी कोई हिंसा की और न ही किसी सार्वजनिक संपदा को क्षति पहुंचाई। इतिहास साक्षी है कि मेरे सानाज ने कभी किसी सेवा या सुविधा को बाधित अथवा ठप्प करने का घृणित पथ भी नहीं अपनाया।
● में गर्व कर सकता हूँ कि एक ईमानदार कर-दाता व राष्ट्र-निर्माता अनारक्षित (सवर्ण) से समुदाय से होने के बाद भी अपनी सभ्यता, संस्कृति और वैचारिकता पर हुए आक्रमणों को धैर्य व संयम के साथ सहन कर एक अनुशासित नागरिक होने का परिचय आम जन व राष्ट्र के हित में दिया।
● गर्व इस बात पर भी है कि मैंने और मुझ जैसे असँख्य नागरिकों ने संक्रमण व हित-अधिग्रहण के प्रहारों को शांतिपूर्वक सहा व परमार्थ के संकल्प और सहकार की भावना से मुंह नहीं मोड़ा।
● सबसे बड़ा गर्व इस बात पर, कि हमने जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र या स्तर के नाम पर भेदभाव से दूर रह कर राजसत्ता के निर्णयों को सहज शिरोधार्य किया। यह जानते हुए भी, कि उनमें अधिकांश अतिपूर्ण व अधिनायकवादी थे।
भली-भांति पता है कि इस सहजता, सरलता, समर्पण का नुकसान मेरी पीढ़ियों को विधान-संविधान और प्रावधान के नाम पर दशकों तक भोगना पड़ेगा। बावजूद इसके हम न विचलित हैं न भयभीत। हमें दवाओं की प्रतिकूलता व आसमानी कगुनौतियों के बाद भी भरोसा अपने उन पंखों पर है, जो उड़ान का हुनर जानते हैं। वो भी बिना किसी जातिगत-अनुज्ञापत्र (लाइसेंस) के। उम्मीद है मेरी तरह गर्व की अनुभूति उन सभी अनारक्षितों को होगी, जिनके हितों व हक़ों में सेंधमारी का सुनियोजित षड्यंत्र सत्ता व सियासत के खुले संरक्षण में सतत जारी है। विवशता यह है कि सज्जन और सुसंस्कृत कदापि संगठित नहीं हो सकते। ऐसे में कोई चारा नहीं बेचारा बनकर उपहास कराने के बजाय गर्वित होने के सिवाय।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदे