*मुझे हर पल तेरा एहसास होने लगा है*
मुझे हर पल तेरा एहसास होने लगा है
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मुझे हर पल तेरा एहसास होने लगा है,
हर लम्हा जिंदगी का खास होने लगा है।
खा कर ठोकरें दर बदर हर गली शहर,
जीवन का इम्तिहान पास होने लगा है।
जो कभी न भाया किसी भी गली बाजार,
तेरी रह्गुजर हर शख्श रास होने लगा है।
बादलों की तरह हररोज गरजने वाला भी,
तेरी दहलीज पर पहुंच दास होने लगा हैं।
खामोशी मे अक्सर उलझ कर मानसीरत,
खुशियों भरे मौसम में उदास होने लगा है।
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सुखविंद्र सिंह मानसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)