#मुझे ले चलो
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★ #मुझे ले चलो ★
मुझे ले चलो
फिर उस गली में
जहाँ रामनाम धुन विराजे
मुझे ले चलो . . . . .
स्वप्न फूल हुए कुछ
कुछ अधखिली कलियाँ
वापस बुलाती हैं
साजन की गलियाँ
नयनों का सागर
कामनाओं की नैया
स्मृतियाँ सदा सुहागन
हुआ मन गवैया
साँझ की बेला
कल्याण मैं कहूँ
भैरवी धुन बाजे
मुझे ले चलो . . . . .
मनमीत मन में रहें
इक कहानी हुई
डगर यह नहीं
मेरी पहचानी हुई
प्यासे आस के पँछी
सब छोड़ दिये
कच्ची मिट्टी के खिलौने
मैंने तोड़ दिये
पल विपल और रात दिन
मिल नहीं पाते
भटक रहे हैं अभागे
मुझे ले चलो . . . . .
माटी से माटी का मिलन
जिन्हें देखना हो बुला लो
बहुत थक गया हूँ
मुझको कांधे उठा लो
मन में विरह की अगन
अगन से लिपट जाऊँगा
शपथ राम की मुझे
अगले पल लौट आऊँगा
चीर मैला हुआ
नये दिन में नया
अँगराग साजे
मुझे ले चलो . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२