मुझे भूल गए न
कहानी: ” मुझे भूल गए, माधव”
सौम्या हर दिन की तरह आज भी पुराने बाग़ के पास वाले मंदिर में आई थी। वही मंदिर जहाँ वह और माधव घंटों साथ बिताते थे। पत्थरों पर बैठकर दोनों ने कितनी बातें की थीं, मानो पूरी दुनिया से दूर हो गए हों। उन दिनों की यादें उसके दिल में जमीं धूल को हर रोज़ फिर से साफ कर देती थीं।
माधव, गाँव का सबसे होशियार लड़का था, पढ़ाई में अव्वल और सपनों से भरा हुआ। उसकी आँखों में बड़े शहर की चमक थी, जो गाँव के लोगों को तो शायद समझ नहीं आती, लेकिन सौम्या को उसकी हर बात का मतलब समझ आता था। वे दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे कि लोगों ने उनके नाम साथ-साथ लेने शुरू कर दिए थे।
फिर एक दिन माधव ने बड़े शहर जाने का फैसला किया। सौम्या ने उसे रोकने की कोशिश की, मगर माधव के सपनों के आगे उसकी भावनाएँ छोटी पड़ गईं। “तुम लौट आओगे, है ना?” सौम्या ने आखिरी बार पूछा था, और माधव ने कहा, “मैं लौटकर आऊँगा, सौम्या। तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी?” और फिर वह चला गया।
वक्त बीतता गया। सौम्या हर दिन उसी जगह बैठकर माधव का इंतजार करती, उसके लौटने की आस में। पर माधव का कोई संदेश नहीं आया। साल गुज़रते रहे, गाँव के लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया कि माधव शायद अब वापस न आए।
लेकिन सौम्या की उम्मीदें अभी भी कायम थीं। हर बार जब मंदिर की घंटियाँ बजतीं, उसे लगता कि माधव का कदमों की आहट सुनाई देगी। गाँव में लोग अब उसे समझाने लगे थे, “सौम्या, वो अब नहीं लौटेगा।” पर सौम्या के दिल ने कभी ये बात नहीं मानी। उसे लगता था कि माधव उसे भूला नहीं होगा।
और फिर, एक दिन खबर आई कि माधव की शादी शहर की एक लड़की से हो गई है। सौम्या का दिल जैसे टूटकर बिखर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इस सच्चाई का सामना करे। मंदिर की घंटियाँ आज भी बजतीं, लेकिन उनमें अब पहले जैसी मिठास नहीं थी।
सौम्या सोचती, “तुम तो मुझे भूल गए न माधव, मगर मैं कैसे भूलूं? ये जगह, ये यादें, ये पल… ये सब तो मुझे हर दिन तुम्हारी याद दिलाते हैं। तुम्हारे बिना जीने का ख्याल ही बेमानी लगता है। तुम मेरे लिए सपने बनकर रह गए, जो कभी हकीकत में नहीं बदल सकते।”
सौम्या अब हर रोज़ उसी मंदिर में आती, लेकिन अब वह माधव के लौटने का इंतजार नहीं करती। वह जान गई थी कि कुछ रिश्ते अधूरे ही रह जाते हैं, और कुछ वादे कभी पूरे नहीं होते।
सौम्या अब अक्सर खुद से बातें करती, मानो माधव उसके सामने हो। “तुम तो मुझे भूल गए न, माधव? मगर मैं कैसे भूलूं?” यह सवाल उसके दिल में हर रोज़ गूंजता। वह सोचती, “क्या तुम्हें हमारी वो शामें याद नहीं आतीं जब हम दोनों घंटों बाग़ में बैठकर सपने बुना करते थे? क्या तुम भूल गए हो कि कैसे हम एक-दूसरे की खामोशियों को भी समझ लेते थे?”
सौम्या के लिए हर एक याद ताज़ा थी। मंदिर के घंटों की आवाज़, बाग़ की हवाएँ, और उन पत्थरों पर बसी उनकी हंसी। वह जानती थी कि माधव अब अपनी नई ज़िंदगी में खुश होगा, मगर उसकी दुनिया अब भी वहीं ठहरी थी, जहाँ माधव उसे छोड़कर गया था। उसकी उम्मीदें अब खामोश हो चुकी थीं, मगर दिल की किसी कोने में अब भी एक छोटी-सी लौ जल रही थी। शायद एक दिन माधव उसे याद करे, शायद उसे सौम्या के बिना अधूरा महसूस हो।
लेकिन फिर भी, हर बार जब वह मंदिर आती, उसे अहसास होता कि माधव की यादें उसकी अपनी सांसों का हिस्सा बन चुकी हैं। वो कैसे उन यादों को दिल से निकाल दे? वे बातें, वे मुलाकातें उसके अस्तित्व में इतनी गहरी बसी थीं कि उनसे दूर जाना खुद से दूर जाने जैसा था।
अब वह माधव के लौटने का इंतजार नहीं करती थी। उसे एहसास हो चुका था कि कुछ रिश्ते समय के साथ बदल जाते हैं, कुछ सवालों के जवाब कभी नहीं मिलते। और माधव के बिना जीने की आदत तो शायद उसे लग गई थी, लेकिन उसकी यादों के बिना जीने की कल्पना करना उसके लिए असंभव था।
उसकी ज़िंदगी अब एक अजीब सी दुविधा में उलझी थी। वह जान चुकी थी कि वह माधव के लिए अब सिर्फ़ एक बीती हुई कहानी थी, लेकिन माधव उसकी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत हकीकत था। वह हर रोज़ माधव को याद करते हुए सोचती, “तुम तो मुझे भूल गए, माधव, मगर मैं कैसे भूलूं? तुम्हारी यादें ही तो हैं, जो मुझे जीने की वजह देती हैं।”
मंदिर के उस पुराने बाग़ में अब भी सौम्या की हंसी गूंजती थी, मगर वो हंसी अब अकेली थी।
कलम घिसाई