मुझे गर्व है अलीगढ़ पर #रमेशराज
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अलीगढ़ जनपद पुरातन काल से ही सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। एक तरफ यहां पहुंचे हुए संतों ने अपनी खुशबू बिखेरी तो दूसरी तरफ रवींद्र जैन और हबीब पेंटर ( बुलबुले – हिंद) ने अपनी गायकी की वातावरण में मिठास में घोली।
अभिनय के अनूठे आयाम तय करने वालों में अलीगढ़ विश्वविद्यालय के अनेक सितारों ने अपनी कीर्ति पताका फहराई।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के ऐसे अनेक नाम है जिनके कारण हमें लोकतंत्र नसीब हुआ। लोककवियों ने गोरों की सरकार के विरुद्ध अपने शब्दों में अंगार भरकर कविताओं को तलवार बनाकर प्रस्तुत किया। अज्ञातवास में क्रांतिकारी भगतसिंह से मिलकर और उनसे प्रेरणा पाकर मेरे पिताश्री लोककवि रामचरन गुप्त ने भी अपने गीतों में अंगार भर लिए। उनके और खेमसिंह नागर जी के गीतों को मैंने बचपन में मंचों से खूब गाया। मेरे पिता के कहने पर बुलबुलेहिंद हबीब पेंटर ने मेरे गांव एसी में एक रात अपनी कव्वालियों से सारे गांववासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस प्रकार के सांस्कृतिक वातावरण की देन यह रही कि मैंने शहीद ऊधम सिंह नामक नाटक की रचना की और उधम सिंह का गांव की मंच पर रोल भी निभाया।
नगर की श्री महेश्वर इंटर कालेज को एकतरफ मेरे छोटे भाई अशोक कुमार गुप्ता ने टॉप किया तो मैंने किशोर कुमार की आवाज वाले फिल्मी गीत गाकर कई पुरस्कार प्राप्त किए।
श्री धर्मसमाज महाविद्यालय में जब प्रवेश लिया तो वहां डॉ अशोक शर्मा और डॉ वेदप्रकाश, अमिताभ, डॉ गोपाल बाबू शर्मा, ज्ञानेंद्र साज, निश्चल जी के साथ – साथ मेरे साहित्यिक गुरु पंडित सुरेशचंद्र पवन व रामगोपाल वार्ष्णेय के सानिध्य में मेरी साहित्यिक अभिरुचि और प्रगाढ़ होती चली गई। इस दौरान नगर तथा मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वान डॉ शहरयार, काजी अब्दुल सत्तार,डॉ रवींद्र भ्रमर,के पी सिंह, डॉ नमिता सिंह, डॉ प्रेम कुमार, डॉ राजेंद्र गढ़वालिया, जनैंद्र कुमार, डॉ कुंदनलाल उप्रेती, डॉ राकेश गुप्त, सुरेंद्र सुकुमार, श्याम बेबस, सुरेश कुमार से। बहुत कुछ सीखने को मिला।
जब मैंने अपनी संपादित पुस्तक ” अभी जुबां कटी नहीं” का क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्त से विमोचन कराया तो वे एक रात मेरी कुटिया पर क्रांतिकारी दादा ए के चक्रवर्ती व देवदत्त कलंकी के साथ रुके। उस रात को मैं अपने जीवन की अविस्मरणीय रात मानता हूं।
प्रमुख गजलकार मधुर नज्मी ने जब मुझे राष्ट्रीय एकीकरण परिषद की अलीगढ़ की साहित्यिक इकाई का अध्यक्ष मनोनीत किया तो मैंने अपने कविमित्र एडीएम वित्त मोहन स्वरूप, सुरेश त्रस्त, विजयपाल, गजेंद्र बेबस, डॉ रामगोपाल शर्मा, अशोक तिवारी, सुहैल अख्तर, इजहार नज्मी के सहयोग से अलीगढ़ औद्योगिक प्रदर्शनी में कौमी एकता एवम कविता पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन किया। कविता पोस्टर प्रदर्शनी की सराहना जिस व्यापक स्तर पर हुई वह आज भी अभिभूत किए है।
मेरी साहित्यिक साधना को ध्यान में रखते हुए डॉ राकेश गुप्त के पुत्र अभय गुप्त ने “साहित्यश्री” से नवाजा।
अलीगढ़ ने मुझे जो दिया, जितना दिया, उस पर मुझे गर्व का अनुभव होता है।