मुझे खराब नहीं होना
“मुझे खराब नहीं होना”
(लघुकथा)
ओजस्वदीप ,मूक-श्रोता और मूक-दृष्टा तो है ,पर ! कब समझदार हो गया ? ये पता ही नहीं चला | मैं सोचता था , कि ये और बच्चों के जैसे तेज क्यों नहीं है ? अधिकतर बच्चे स्कूल के कैंटीन में से लेकर चीजें खाते हैं,तो सीधी सी बात है ,कि इसका प्रभाव सहपाठियों पर पड़ना लाज़मी भी है | ओजस भी महीने में एक दो बार पैसे ले जाता ,पर ! कहीं ये आदत न बन जाए ! यही सोचकर एक दिन मैंने दस रूपये देने से मना कर दिया ,और थोड़ी सख्ती से कहा कि रोज-रोज अच्छी बात नहीं होती बेटा ! इतना सुनते ही वह रोने लगा कि मुझे तो चाहिए ही | इस बात पर मैंने उसे कहा ,कि ठीक है खराब होना है तो ले जा और मैंने उसे जाते समय दस रूपये दे दिये , परन्तु उसने नहीं लिए ! मैंने चार-पाँच दफा कोशिश की लेकिन नहीं लिए |
मैंने सोचा नाराज हो गया | तो मैंने कारण पूछा कि अब क्या हुआ जो नहीं ले रहा, तूने ही माँगे थे | इस पर उसने बड़ी ही मासूमियत के साथ आँखों में आँसू लाते हुए कहा ,कि पापा मुझे खराब नहीं होना |
यह बात सुन मेरी भी आँखों में अश्रुजल छलक आया और गर्व भी हुआ कि ओजस्व और बच्चों की तरह तेज तो नहीं है, किन्तु समझदार बहुत है |
डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”