Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Feb 2021 · 9 min read

‘‘मुझे एक बोतल खुशी चाहिए।’’ भाग – 2

उस दिन से मुकुल और उसकी मम्मी की हर खुशी और हर गम में साझेदार बन गये थे, होटल मालिक रफीक। और हर रोज मुकुल और उसकी मम्मी से मिलने जाने लगे थे, मुकुल को भी उस दिन से उसकी मम्मी के अलावा एक ऐसा इंसान मिल गया था, जिससे वह अपने मन की बात कह लेता था, उनसे जिद कर लेता था और कभी-कभी तो अपनी मम्मी की जगह होटल मालिक रफीक मामा को अपने स्कूल में अभिभावक के रूप में ले जाने लगा। और होटल मालिक रफीक ने मुकुल के पिता को भी धीरे-धीरे समझाना शुरू कर दिया था। और इस तरह धीरे-धीरे होटल मालिक रफीक मुकुल और उसकी मम्मी के जीवन का हिस्सा बन गये थे।
पिछले चार-पाँच दिनों से होटल मालिक किसी काम से बाहर गये थे, इसलिए मुकुल और उसकी मम्मी से मिल नही पाये थे। और जिस दिन अपने होटल वापस आए, और मुकुल के घर जाने ही वाले थे तभी मुकुल उनके होटल पर खाना लेने पहुँच गया। मुकुल होटल मालिक रफीक को अपनी मम्मी तबियत खराब होने की बात बताकर खाना लेकर वापस अपने घर अपनी मम्मी के पास लौट गया। मुकुल की बात सुनकर होटल मालिक रफीक स्वयं को रोक नही पाये और वे उसके पीछे-पीछे उसके घर चले गये। और मुकुल के घर में प्रवेश करते उन्होने कुछ नाराजगी व्यक्त करते हुए मुकुल कहा, ‘‘सुशीला कल से तुम्हारी तबियत खराब है और तुमने मुझे बताना भी जरूरी नही समझा। अब मैं तुम्हारे लिए इतना पराया हो गया, कि इस बात की खबर मुझे मुकुल से मिल रही है। होटल मालिक रफीक मामा की नाराजगी में मुकुल की मम्मी सुशीला के लिए फिक्र थी एक अपनापन था, क्योंकि होटल मालिक रफीक मुकुल और उसकी मम्मी को अपनी परिवार ही मानते थे। अपनी छोटी बहन मानते थे।
होटल मालिक रफीक को देखकर मुकुल की मम्मी ने कहा, ‘‘अरे भाईजान आप पहले अन्दर तो आओ। आपकी नाराजगी जायज है, और आपको नाराज होने का अधिकार भी है। लेकिन दरअसल बात ये है, कि आप कई दिनों से शहर से बाहर गये थे अपने व्यापार के लिए। बाहर आप किस परिस्थिति में होंगे, और किस मूड होगे। बस इसलिए आपको कुछ भी बताना मुझे ठीक नही लगा। और वैसे भी भाईजान ऐसा कुछ खास नहीं हुआ। कल मुकुल के पापा थोड़े गुस्से में थे, इसलिए थोड़ी सी लड़ाई हो गई थी।
इतनी बात सुनकर होटल मालिक रफीक फिर से नाराज हो गये, और बोले सुशीला मैंने तो तुम्हें उसी रात अपनी छोटी बाजी (बहन) मान लिया था, लेकिन मुझे क्या पता कि तुम मुझे अब तक अपना भाई स्वीकार नहीं कर पाई। और ऊपर से कह रही हो, कि ऐसा कुछ खास नहीं हुआ। तुम मुझे क्या दूध पीता बच्चा समझती हो क्या। पूरा घर बिखरा पड़ा है, ऐसा लग रहा है, जैसे यहाँ कोई युद्ध हुआ है। घर में आज खाना नहीं बना है, मुकुल भूख से व्याकुल है तुम्हें अपने बिस्तर से उठ तक नहीं मिल रहा है। और तुम मुझसे कह रही हो। कुछ नहीं हुआ। बेटा सुशीला 65 साल उम्र है, मेरी जिन्दगी के हर रंग को देखा है। मेरे बाल धूप में सफेद नहीं हुए। समझी अब और अब बताओं क्या हुआ।
होटल मालिक रफीक के गुस्से में अपने लिए इतनी फिक्र देखकर मुुकुुल की मम्मी बहुत जोर से फफककर रो पड़ी। जैसे उन्होंने अपनी आँखों में आंसुओं का समन्दर रोककर रखा हो, और होटल मालिक रफीक के अपनेपन की आहट ने उनके भीतर छिपे समन्दर का बाँध तोड़ दिया। होटल मालिक रफीक ने मुकुल की मम्मी को धीरज बँधाते हुए उनके सिर हथ रखा और कहा, ‘‘बेटा शान्त हो जाओ, तुम तो मेरी बहादुर बहन हो, बताओं क्या हुआ।’’
मुकुल की मम्मी काफी देर तक होटल मालिक रफीक के कन्धे पर सिर रखकर रोती रही, काफी देर बाद सान्त्वना देते हुए कहा, ‘‘बेटा ! अब बताओं भी कि क्या हुआ। कि रोती रहोगी।’’
तब मुकुल की मम्मी ने होटल मालिक रफीक को बताया, ‘‘भाईजान ! आप कहाँ चले गये थे, कल से आपकी मुझे बहुत याद आ रही थी। कल मुझे कई घरों से तन्ख्वा मिली थी। मैंने सोचा था कि घर का कुछ सामान ले आऊँगी, और मुकुल के स्कूल की फीस भर दूंगी। मुकुल के पास बहुत समय से स्कूल वाले जूते भी नहीं है, इसलिए बेचारे को स्कूल में इसकी टीचर क्लास रूम से बाहर खड़ा कर देती है। सोचा स्कूल से जूते भी दिया दूंगी। लेकिन कल जब मैं घर आयी, तो मेरे आने के थोड़ी देर बाद मुकुल के पापा घर आ गए। और………………….
मुकुल के पापा मुझसे बोले, ‘‘सुशीला मुझे थोड़े पैसे देदे। आज मेरे पास पैसे नहीं है, लेकिन मुझे पैसों की जरूरत है।’’
तब मैंने कहा, ‘‘सुबह से रिक्शा लेकर गये थे, तुम कमाकर लाये, वो कहाँ खर्च हो गये। घर में तो कुछ लाये नहीं। फिर कहाँ गये।’’
मुकुल के पापा मुझसे बोले, ‘‘अरे खर्च हो गये, किसी में। अब तुझे क्या बताऊँ, हर बात बतानी जरूरी है क्या।’’
तब मैंने कहा, ‘‘क्यों जरूरी क्यों नहीं है, बीबी हूँ तुम्हारी। मुझे हक है पूछने का।’’
मुकुल के पापा मुझसे बोले, ‘‘अच्छा अब तू मुझसे जवान लडायेगी, हक जतायेगी। बहुत ‘‘पर’’ निकल आये हैं तेरे क्यों।’’ देख मैं अब सुधर गया हूँ। और मुझे पुराना वाला इंसान बनने के लिए मजबूर मत कर। मुझे पैसे देदे।
तब मैंने कहा, ‘‘मेरे पास नहीं हैं।’’
मुकुल के पापा मुझसे बोले, ‘‘नहीं है का क्या मतलब। देख मुझे पता है आज तुझे तनख्वा मिली है, और आज मुझे पैसे चाहिए वरना अच्छा नहीं होगा।’’
तब मैंने कहा, ‘‘क्या अच्छा नहीं होगा, किस हक से पैसे माँग रहे हो। और किसलिए घर का सारा खर्च तो मैं करती हूँ, तो तुम्हें किस लिए पैसे चाहिए। दारू पीने के लिए। शर्म तो तुमको आती नही सात साल का बेटा हो गया है और आज तक सात मिनट भी प्यार से उससे बाप नहीं की। न आज तक मुझसे हाल-चाल पूछा कि तू कैसी है, कैसे अकेले सब कुछ करती है। कही तुझे किसी चीज की जरूरत तो नहीं। और उल्टा मुझसे पैसे छीन-छीनकर ले जाते हो। अब बहुत हो गया। मैं आज से तुमको कोई पैसा नहीं दूंगी। जाओं यहाँ से आजतक तुम्हारी हर बात नीचे सिर डालकर सुनती रही, लेकिन अब नहीं सुनूंगी।’’ मेरा इतना कहने पर मुकुल के पापा बहुत भड़क गये। और मुझे बाल पकड़कर घसीटते हुए ले गये और दीवाल में मेरा सिर मार दिया, बाद में इतने पागल हो गये, कि आपके लिए कहने लगे, कि उस मुल्ले की वजह से तेरी आजकल बहुत जवान चलने लगी है क्यों ? देखता हूँ आज तुझे मुझसे कौन बचाता है। और इतना मारा कि कल से मुझे उठ तक नहीं मिल रहा है, वो तो ये कहो कल मेरे आने पर मुकुल ने मुझसे खाना माँगकर खा लिया, और सो गया वरना बेचारा शाम भी भूखा रहता।
इतना कहकर मुकुल की मम्मी फिरसे रोने लगी। उनकी यह मनोदशा होटल मालिक रफीक भी परेशान हो गये। वे कुछ कह नही पा रहें थे। क्योंकि उन्होने मुकुल के पापा को समझाकर सुधारने का बहुत प्रयास किया था, फिर भी वह नही सुधरा। होटल मालिक रफीक के पास ऐसा कोई शब्द नहीं था, जिससे वह मुकुल की मम्मी को सांत्वना दे सके। वे बिल्कुल खामोश बैठे रहे।
नन्हा मुकुल जो बीती शाम अपने मम्मी-पापा के झगड़े से पहले सो गया था, जिसे उसकी मम्मी अभी मासूम बच्चा समझती थी। वास्तव में अपनी सात वर्ष की आयु मुकुल ने कई बार जिन्दगी का ऐसा मंजर देखा था, जहाँ उसका बचपन खो चुका था, और उसकी न समझी की उम्र में भी उसके भीतर बहुत सारी समझ विकसित हो चुकी थी। और उसने अपने घर में पड़ी एक शराब की खाली बोतल उठायी और अपने घर से बाहर निकल गया।
घर से बाहर निकलकर चारों तरफ देखा, और तभी उसे एक मदिरालय दिखा। मुकुल उस दुकान पर पहुँच गया। उस दुकान का काउण्टर मुकुल से काफी ऊँचा था। इसलिए वह अपने पैरों की अंगूलियों के बल पर उचक-उचककर उस दुकान के मालिक से अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा था। मुकुल काफी देर तक कोशिश करता रहा, लेकिन उस शराब की दुकान का मालिक उसकी बात सुन नही पा रहा था। काफी देर बाद अचानक शराब की दुकान के मालिक की नजर अपने काउण्टर पर गई। उसने देखा कि कोई शराब की खाली बोतल दिखा रहा है। यह देखकर उस शराब की दुकान का मालिक बाहर निकलकर आया और उसने पूछा, ‘‘बेटा क्या हुआ और यहाँ तुम क्या कर रहे हो।’’
मुकुल, ’‘अंकल जी मुझे इस बोतल में थोड़ी सी खुशी चाहिए।’’
मुकुल की बात सुनकर उस शराब की दुकान का मालिक आश्चर्य में पड़ गया। और बोला, ‘‘बेटा ये क्या कह रहे हो। हमारे यहाँ खुशी नहीं मिलती।’’
मुकुल, ‘‘अच्छा अंकल जी ! आपकी दुकान पर नहीं मिलती, तो मैं किसी और दुकान पर चला जाता हूँ।’’
मुकुल उस दुकान से निकल कर एक दूसरी शराब की दुकान पर चला गया, लेकिन उस शराब के दुकान का मालिक मुकुल के द्वारा बोले गये शब्द ‘‘अच्छा अंकल जी ! आपकी दुकान पर नहीं मिलती, तो मैं किसी और दुकान पर चला जाता हूँ।’’ को सुनकर बेचैन हो गया उसके पीछे-पीछे चल दिया।
मुकुल जब शराब की दूसरी दुकान पर पहुँचा तो उसने वहाँ भी उस शराब की दुकान का मालिक से कहा, ‘‘अंकल जी मुझे इस बोतल में थोड़ी सी खुशी चाहिए।’’
दूसरी शराब की दुकान के मालिक भी आश्चर्य में पड़ गया। ये नन्हा बालक कौन है और बोला, ‘‘ बेटा ये क्या कह रहे हो। हमारे यहाँ खुशी नहीं मिलती।’’
वहाँ भी उस शराब की दुकान के मालिक से मुकुल ने कहा, ‘‘अच्छा तो आप भी खुशी नहीं बेचते, कोई बात मैं कही और से लेता हूँ।’’
इतना कहकर मुकुल दूसरी दुकान पर जाने लगा, तभी पहली वाली शराब की दुकान के मालिक ने आकर मुकुल को रोक लिया और मुकुल से बोला, ‘‘बेटा! मुझे पता की खुशी कहाँ मिलती है, लेकिन मुझे पहले ये बताओ, कि तुम इस खुशी का क्या करोगे।’’
तब मुकुल ने कहा, ‘‘मैं अपनी मम्मी को पिला दूंगा। तभी वो पहले की तरह हँसने लगेंगी।’’
मुकुल की बात सुनकर उन दोनों शराब की दुकान के मालिकों की यह जानने के लिए उत्सुकता और बढ़ गई, कि आखिर यह नन्हा सा बालक कह क्या रहा ? उन दोनों ने मुकुल से कहा बेटा क्या हुआ है आपकी मम्मी को ?
तब मुकुल ने उन्हें बताया, ‘‘अंकल जी मेरी मम्मी के शरीर में कल से बहुत दर्द हो रहा है, वो अपने बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही हैं।’’
उन दोनों शराब की दुकान के मालिकों को और अधिक आश्चर्य हुआ और उन्होने पूछा, ‘‘बेटा हम कुछ समझे नही।’’
तब मुकुल ने बताया, ‘‘अंकल जी! मेरी मम्मी लोगों के घरों मे काम करके पैसे कमाती है। और जब भी उनको उनके काम के पैसे मिलते है, मेरे पापा उनसे छीनकर लाकर आपकी दुकान पर देकर शराब खरीद लेते है, और जब मम्मी उनको पैसे नहीं देतीं हैं, तब पापा उनको मार-मारकर सारे पैसे छीनकर ले जाते है। कल भी जब उनको पैसे मिले तब पापा ने पैसे छीनने की कोशिश की, लेकिन जब मम्मी ने उनको पैसे नहीं दिये, तब पापा ने मम्मी को बहुत मारा, और इतना मारा कि वो अपने बिस्तर से उठ भी नही पा रहीं हैं। और कल से बहुत रो भी रहीं हैं। आपकी दुकान पर मेरी मम्मी के चेहरे की मायूसी मिलती है, तो किसी न किसी दुकान पर खुशी भी जरूर मिलती होगी। अब तो अंकल जी मैंने आपको बता दिया कि मुझे खुशी क्यों चाहिए, अब बता दीजिएना कि कौन सी दुकान पर मिलती है खुशी। मुझे ज्यादा नही वस इसमें चाहिए एक बोतल खुशी’’

नन्हे मुकुल की बात सुनकर वो दोनों शराब की दुकान के मालिक अपनेआप में खामोश हो गये, उन दोनों के पास मुकुल की उस बात का कोई जबाव नहीं था। वो दोनों ऐसा महसूस कर रहे थे, जैसे किसी ने उनके चेहरे पर जोर का तमाचा मार दिया हो। मुुकुल बार-बार उन दोनों शराब की दुकान के मालिकों से पूछ रहा था, लेकिन वो दोनों बोल भी नही पा रहे थे।
इतने में होटल मालिक रफीक मुकुल को ढूंढते-ढूंढते आ गये, और बोले, मुकुल लल्ला तुम यहाँ क्यों आ गये, तुम्हारी मम्मी तुम्हारे लिए बहुत परेशान हो रहीं है। और ये शराब की बोतल कहाँ से लाये हो, फेकों इसे।
होटल मालिक रफीक मुकुल का हाथ पकड़कर घर वापस ले गये, और वे दोनों शराब की दुकान के मालिक मुकुल को देखते रह गये। कुछ नहीं बोल पा रहे थे बेचारे। तभी उन दोनों की नजर उस बोतल पर पड़ी, जिसे मुकुल साथ लाया था, जो उन दोनों शर्मिन्दा कर रही थी, जिसमें से बार-बार एक ही आवाज आ रही थी। अंकल मेरी मम्मी के शरीर में बहुत दर्द हो रहा है, वो बहुत रो रही है। मैं अपनी मम्मी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान सजाना चाहता हूँ, इसलिए इस बोतल में ‘‘ मुझे एक बोतल खुशी चाहिए।’’

धन्यवाद!
मोहित शर्मा ‘‘स्वतन्त्र गंगाधर’’
28 फरवरी 2021

Language: Hindi
1 Comment · 518 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कृपया सावधान रहें !
कृपया सावधान रहें !
Anand Kumar
"सोच"
Dr. Kishan tandon kranti
ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
Buddha Prakash
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
उनकी नाराज़गी से हमें बहुत दुःख हुआ
उनकी नाराज़गी से हमें बहुत दुःख हुआ
Govind Kumar Pandey
खाने को पैसे नहीं,
खाने को पैसे नहीं,
Kanchan Khanna
मासुमियत - बेटी हूँ मैं।
मासुमियत - बेटी हूँ मैं।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
7-सूरज भी डूबता है सरे-शाम देखिए
7-सूरज भी डूबता है सरे-शाम देखिए
Ajay Kumar Vimal
मेरी जान ही मेरी जान ले रही है
मेरी जान ही मेरी जान ले रही है
Hitanshu singh
दीप जलते रहें - दीपक नीलपदम्
दीप जलते रहें - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
स्वयं आएगा
स्वयं आएगा
चक्षिमा भारद्वाज"खुशी"
#शेर-
#शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
जिन्होंने भारत को लूटा फैलाकर जाल
जिन्होंने भारत को लूटा फैलाकर जाल
Rakesh Panwar
तेरे भीतर ही छिपा, खोया हुआ सकून
तेरे भीतर ही छिपा, खोया हुआ सकून
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
उम्र ए हासिल
उम्र ए हासिल
Dr fauzia Naseem shad
इंतज़ार एक दस्तक की, उस दरवाजे को थी रहती, चौखट पर जिसकी धूल, बरसों की थी जमी हुई।
इंतज़ार एक दस्तक की, उस दरवाजे को थी रहती, चौखट पर जिसकी धूल, बरसों की थी जमी हुई।
Manisha Manjari
*आत्मा की वास्तविक स्थिति*
*आत्मा की वास्तविक स्थिति*
Shashi kala vyas
बच्चा सिर्फ बच्चा होता है
बच्चा सिर्फ बच्चा होता है
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
Satyaveer vaishnav
ख्वाब को ख़ाक होने में वक्त नही लगता...!
ख्वाब को ख़ाक होने में वक्त नही लगता...!
Aarti sirsat
मैं 🦾गौरव हूं देश 🇮🇳🇮🇳🇮🇳का
मैं 🦾गौरव हूं देश 🇮🇳🇮🇳🇮🇳का
डॉ० रोहित कौशिक
करके याद तुझे बना रहा  हूँ  अपने मिजाज  को.....
करके याद तुझे बना रहा हूँ अपने मिजाज को.....
Rakesh Singh
कविता: घर घर तिरंगा हो।
कविता: घर घर तिरंगा हो।
Rajesh Kumar Arjun
यकीन नहीं होता
यकीन नहीं होता
Dr. Rajeev Jain
बस्ते...!
बस्ते...!
Neelam Sharma
विश्व हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :.....
विश्व हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :.....
sushil sarna
#आलिंगनदिवस
#आलिंगनदिवस
सत्य कुमार प्रेमी
*मैं वर्तमान की नारी हूं।*
*मैं वर्तमान की नारी हूं।*
Dushyant Kumar
** लिख रहे हो कथा **
** लिख रहे हो कथा **
surenderpal vaidya
*सॉंसों में जिसके बसे, दशरथनंदन राम (पॉंच दोहे)*
*सॉंसों में जिसके बसे, दशरथनंदन राम (पॉंच दोहे)*
Ravi Prakash
Loading...