‘‘मुझे एक बोतल खुशी चाहिए।’’ भाग – 1
स्कूलों की छुट्टी हो चुकी थी, दोपहर के यही कोई 2ः30-3ः00 बज रहे थे। मुकुल अपने स्कूल से जब घर वापस लौटा तो वो सीधे रसोईघर में चला गया, बहुत तेज भूख लगी थी उसे। मुकुल ने रसोईघर में खाने के लिए खाना सब जगह ढूँढा, लेकिन रसोईघर में उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। उस दिन मुकुल सुबह जल्दी उठकर स्कूल चला गया था। दरअसल, उसके स्कूल में मासिक टेस्ट चल रहे थे उसके। वैसे हमेशा मुकुल की मम्मी ही उसको सुबह जल्दी उठकर घर में साफ-सफाई, झाडू-पोझा करने के बाद उसे जगाती थी। फिर नहला धुलाकर, नाश्ता खिलाकर, लंच बॉक्स देकर उसको तैयार करके स्कूल भेजती थी। लेकिन उस दिन मुकुल की मम्मी सुबह जल्दी नहीं उठ पायी थी, इसलिए घर में न तो साफ सफाई हो पायी थी, और न ही उस सुबह खाना ही बन पाया था। उन दिनों मुकुल के स्कूल में उसके मासिक टेस्ट चल रहे थे और उन टेस्टों के अंक उसकी वार्षिक परीक्षा में जुड़ने वाले थे इसलिए चाहकर भी मुकुल ने उस दिन छुट्टी नहीं की। और उस दिन सुबह जल्दी उठकर अपने आप खुद ही नहा धोकर बेचारा बिना कुछ खाये पिये अपने स्कूल निकल गया। मुकुल जब अपने स्कूल की छुटटी के बाद घर वापस लौटा, तो उसके पूरे घर में खामोशी इस तरह से बिखरी पड़ी हुयी थी, जैसे उस घर में कोई बहुत बड़ा तूफान आकर चला गया हो, और सब कुछ इधर-उधर बिखेर कर चला गया हो। मुकुल को जब खाना खाने के लिए रसोई में गया तब उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। लेकिन कुछ बर्तन ऐसे जरूर मिले, जिसमें पिछली शाम मुकुल की मम्मी ने खाना बनाया था। थोड़े से बर्तन उन्होंने शाम को ही धुलकर रख दिए थे। लेकिन एक चावल का भगौना और दाल वाला कूकर वैसा का वैसा ही खाली सना हुआ रखा था।
रसोई के पड़े खाली बर्तनों को देखकर मुकुल उस कमरे में चला गया, जिस कमरे में उसकी मम्मी कम्बल ओढ़कर लेटी हुई थीं। मुकुल जब उनके पास पहुँचा तो वे दर्द से बहुत जोर कराह रहीं थी। उन्हें देखकर साफ-साफ लग रहा था, जैसे उनके दर्द की पीड़ा असहनीय हो। अपनी मम्मी को दर्द में कराहाता देख मुकुल उनसे कुछ बोल नहीं पा रहा था, क्योंकि बाल मन भी परिस्थितियों को भांप लेता है। लेकिन उस घर में बिखरी खामोशी को खत्म करने के लिए मुकुल ने अपनी माँ से कहा, “मम्मी भूख लगी है।” मुकुल की मम्मी ने जब उसकी बात सुनी तब वे ज्यादा कुछ तो नहीं बोल सकीं, लेकिन उन्होंने अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही मुकुल से बस इतना ही कहा, “बेटा उस अलमीरा में मेरा पर्स रखा है, उसे निकाल लाओ।” मुकुल ने जब उनका पर्स निकाल कर उन्हें दिया, तब उसकी मम्मी ने उसे अपने पर्स से कुछ पैसे निकाल कर उसे देते हुए कहा, “बेटा आज मम्मी की थोड़ी तबियत खराब हो गई है, इसलिए आप रफीक मामा जी के होटल पर चले जाओ और उनसे मामा जी के होटर से लेकर कुछ खालो। अभी मम्मी थोड़ी दवा खाकर जब ठीक हो जाएगी, तब अपने बाबू को उसके मन पसंद दाल-चावल बनाकर खिलाएगी।”
मुकुल के घर के बाहर एक खाने का होटल था, जहाँ रोज सुबह, दोपहर और शाम के वक्त टैम्पो वाले, आॅटो रिक्शा वाले और रोज के दिहाड़ी मजदूर सब खाना खाया करते थे। मम्मी के दिए हुए पैसे लेकर मुकुल बाहर रफीक मामा जी के होटल पर गया और उसने रफीक मामा जी से कहा, “मामा जी! मामा जी! थोला थाना पैक करा दीजिए, मैंने आज सुबह से कुछ भी नहीं खाया, नाश्ता भी नहीं किया और मम्मी ने तो कल रात से कुछ भी नहीं खाया।”
ये सुनकर होटल के मालिक रफीक मामा ने मुकुल से कहा, “क्या हुआ मुकुल बेटा। तुमने नाश्ता क्यों नहीं किया।” रफीक मामा के पूछने पर मुकुल ने उन्हें बताया, ‘‘मामा जी मम्मी तो आज सुुबह से उठी ही नहीं, सुबह से कम्बल ओड़कर लेटी हुयी है, उठ ही नही रही। और उनकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं है। दर्द से बहुत कराह रहीं हैं। इसलिए आज खाना बना ही नही। आप एक थाली खाना पैक कर दीजिए, मम्मी ने भी कल रात से कुछ भी नहीं खाया है, मैं और मम्मी दोनों मिलकर खा लेंगे। तभी मम्मी खाना खाकर दवाई भी खा लेंगी, और ठीक हो जायेगी फिर शाम को मेरे लिए मेरे मन पसंद के दाल-चावल बनाएंगी। मुकुल की बात सुनकर उसके रफीक मामा ने अपने होटल में काम करने वाले एक कर्मचारी से कहकर एक थाली खाना पैक करवा दी।
मुकुल खाना लेकर जब अपनी मम्मी के पास अपनी मम्मी से कहा, “मम्मी देखों मैं आपके लिए क्या लाया हूँ, मैं आपके लिए खाना लाया हूं मम्मी मुझे मालूम है आपने भी कल से कुछ नहीं खाया है उठिए और मेरे साथ मिलकर खाना खाईए। फिर आप दवाई खाकर जल्दी ठीक हो जाओं। मुझे आपके हाथों से दाल चावल बनाकर खाना है। उठो मम्मी और खाना खाईये।
मुकुल सात वर्ष का बालक था, उसकी मम्मी उसको भले ही उसे नसमझ समझती थी, लेकिन फिर भी उसकी न समझी में एक समझ विकसित हो चुकी थी। एक कहावत है, कि गीली मिट्टी को जिस भी आकार में ढाला जाए, वह उसी आकार में ढल जाती है। ठीक उसी प्रकार बाल मन भी होता है, जो बहुत जल्दी परिस्थितियों को भांप लेता है। इसलिए मुकुल ने भांप लिया था कि उसकी मां भूखी है। मुकुल की मम्मी ने जब उसके हाथों में खाने की थैली और उसकी नन्ही आंखों में अपने लिए फिक्र देखी, तो अचानक भावुक हो गई। और सबसे पहले उन्होने मुकुल को अपने सीने से लगा लिया, और कुछ देर उसे अपने सीने से लिपटाये रही।
थोड़ी देर बाद मुकुल ने कहा, ‘‘मम्मी मेरी भूख बहुत तेज हो गई है और अब मैं आपके हाथों से ही खाऊंगा।’’
मुकुल की बात सुनकर उसकी मम्मी की आँखों में कुछ नम हो गई और कुछ भावुुक होते हुए उन्होने मुकुल से कहा, ‘‘लल्ला जाओ रसोई में एक धुली हुयी रखी होगी, उस थाली उठाकर ले आओ, मैं अपने बच्चे को अपने हाथों से खिलाऊंगी।’’
मुकुल की मम्मी दर्द से इतना करहा रहीं थी, कि उन्हें बैठा भी नही जा रहा था। लेकिन कहते है न किसी बालक का तुतलाहट भरा आग्रह सुनकर तो ईश्वर भी उसके बचपन का दास बन जाते हैं। इसलिए मुकुल की मम्मी जो उठकर बैठ भी नहीं पा रही थी, मुकुल का बाल आग्रह सुनकर उठकर अपने बिस्तर पर ही धोक लगाकर बैठ गई। और उन्होने बैठे-बैठे मुकुल को अपने हाथ से खाना खिलाया और खुद भी खाया। हालांकि ये घटना मुकुल के लिए कोई नई नहीं थी, उसके घर में तो आये दिन ऐसे किस्से होते ही रहते थे।
दरअसल, मुकुल के पिता एक रिक्शा चालक थे, जिन्होने अपनी जिम्मेदारियों को कभी भी नही समझा। शराब पीना, शराब पीकर मार-पीट करना, गाली-गलौज करना तो के स्वभाव में था। मुकुल के पिता न तो मुकुल की मम्मी को समझते थे और न ही मुकुल से जरा भी प्यार करते थे, वो न तो एक अच्छे पति ही बन पाये थे और न ही अच्छे पिता। मुकुल के पिता जितना भी कमाते थे उससे शराब पीने में, जुआ खेलने में खर्च कर देते थे और यही सबसे बड़ी वजह थी कि मुकुल की मम्मी को अपना और मुकुल का पेट पालने के लिए घर-घर जाकर झाडू-पोझा करके पूरे घर की जिम्मेदारी खुद ही उठानी पड़ती थी।
मुकुल और उसकी मम्मी दोनों मिलकर खाना खा ही रहे थे, कि अचानक किसी के आने की आहट सुनाई दी। दोनों ने जब दरवाजे की ओर देखा तो होटल मालिक रफीक खड़े थे। जिन्हें देखकर मुकुल की मम्मी बोली, ‘‘आओ भाईजान आओ। कहिए कैसे आना हुआ।’’
अन्दर आते हुए होटल मालिक रफीक ने कुछ नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘सुशीला कल से तुम्हारी तबियत खराब है और तुमने मुझे बताना भी जरूरी नही समझा। अब मैं तुम्हारे लिए इतना पराया हो गया, कि इस बात की खबर मुझे मुकुल से मिल रही है। होटल मालिक रफीक मामा की नाराजगी में मुकुल की मम्मी सुशीला के लिए फिक्र थी एक अपनापन था, क्योंकि होटल मालिक रफीक मुकुल और उसकी मम्मी को अपनी परिवार ही मानते थे।
बात दरअसल ये थी, कि उस दिन से कुछ समय पहले जब एक रात 11ः30 बजे होटल मालिक रफीक अपने होटल को बन्द कर रहे थे, तब उनके कानों में किसी के रोने की आवाज सुनाई दी, उस आवाज को सुनकर उन्हे कुछ अजीब सा लगा और उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि वह आवाज किसकी है और आ कहां से रही है, यही जानने के लिए उन्होने जब अपने आस-पास देखा तो उनके होटल से कुछ दूरी पर एक महिला सड़क किनारे फुटपाथ पर अपने दोनों हाथों की हथेली पर अपना माथा टिकाए बैठी थी, और रो रही थी। होटल मालिक रफीक एक वृद्ध व्यक्ति थे उन्होंने जब उस महिला के नजदीक पहुंचकर उससे जानने का प्रयास किया, कि वह कौन है, कहाँ रहती है, क्या करती है, और यहाँ क्या कर रही है।
उस महिला ने जब अपना सिर उठाकर होटल मालिक रफीक की ओर देखा, तो वह महिला कोई और नही थी, बल्कि मुकुल की मम्मी थी। होटल मालिक रफीक जब मुकुल की मम्मी के पास आये और उन्होनें मुकुल की मम्मी से कहा, ऐ लड़की यहाँ क्या कर रही है इतनी ठण्ड में। देखने में तो तू ठीकठाक लग रही है, फुटपाथ पर रहने वाली तो तू है नही। फिर क्यों ठण्ड में ठिठुर रही है। और वैसे यहाँ पर तेरा घर कहाँ है, चल यहाँ से अपने घर जा वरना तेरी तबियत खराब हो जायेगी।
होटल मालिक रफीक की बात सुनकर मुकुल की मम्मी ने रोते हुए और गुस्से से कहा, ‘‘क्या है, क्या समस्या हैं आपको। आप कौन हो, क्या लगते हो मेरे, जो मैं आपके साथ चलूँ, बताइए और कहाँ चलूँ, क्यों चलूँ, कोई नहीं है मेरा इस दुनिया में। आप जाओ यहाँ से बस। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, मैं जैसी हूँ, ठीक हूँ।
मुकुल की मम्मी की आवाज में उसकी मन की पीड़ा साफ-साफ झलक रही थी। मुकुल की मम्मी की आवाज का दर्द होटल मालिक रफीक महसूस कर पा रहे थे, उस दिन। उन्होने महसूस कर लिया था, कि इस महिला को इसके पति ने शराब के नशे में मार-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया है।
मुकुल की मम्मी की हालत देखकर होटल मालिक रफीक को कुछ अजीब लगा और उन्होने मुकुल की मम्मी से कहा, ‘‘मुझे अपना बड़ा भाई समझों बहन, मै तुम्हारे बड़े भाई जैसा हूँ, बताओं मुझको क्या हुआ तुम्हें।
इस पर मुकुल की मम्मी और खीज गई। फिर ठिठककर होटल मालिक रफीक से बोली, ‘‘देखिए जनाव। मुझसे किसी भी प्रकार का रिश्ता न जोड़िये। दुनिया के अब किसी भी रिश्ते पर मुझे भरोसा नहीं रहा।’’ और न ही मुझमें इतनी हिम्मत बाकी है, कि अब कोई नया रिश्ता बनाकर, उस नये रिश्ते का फरेब सह सकूं। दुनिया रिश्तों के साथ तो मेरा दूर-दूर तक कोई संबंध नही है। पैदा होकर आज तक हर रिश्तें ने मुझे छला है।
उस वक्त होटल मालिक रफीक को समझ नही आ रहा था, कि वे क्या करें, मुकुल की मम्मी को कैसे समझाएं। कि वह उसका दुश्मन नहीं हैं, तभी उन्होंने मुकुल की मम्मी के सिर पर हाथ रखते हुए बढ़े प्यार के साथ कहा, ‘‘देखों बेटा! मैं कोई भगवान तो हूँ नही, जो अपनी नियत का प्रमाण तुम्हें दे सकूं। बेटा मेरी उम्र 65 साल की है। मेरी खुद दो बेटियां है और इसके लिए मैं अल्लाह-ताला का शुक्रगुजार हूं, कि उन्होने मुझे बेटियां दीं। इसलिए बेटियों का दुःख दर्द मैं समझता हूं। बेटा मेरी कोई बहन नही थी मैं अपने मां-बाप का अकेला बेटा हूं। इसलिए अल्लाह-ताला से मैंने हमेशा एक बहन ख्वाहिश रखी। और आज अल्लाह-ताला ने मेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दी। बताओं तो बहन तुम क्यों इतनी परेशान हो।
उस दिन मुकुल की मां के सिर पर होटल मालिक रफीक ने जब हाथ रखा तब उसे ऐसा लगा, जैसे किसी पहली बार उसके सिर पर प्यार की छाया कर दी हो। होटल मालिक रफीक के इतने प्यार और अपनेपन से पूछने पर मुकुल की मां ने बताया, ‘‘भाईजान मेरा नाम सुशीला है। मैं यहीं पास में ही रहती हूँ। मेरे पिता एक रिक्शा चालक हैं। सुबह को रिक्शा लेकर निकलते हैं, तो शाम को ही लौटते हैं। मेरा एक छोटा बेटा भी है मुकुल नाम है उसका। मेरे पति को न मेरी फिक्र रहती है और न ही मेरे बेटे की चिन्ता होती है। मेरे पति रिक्शा चलाकर जितना कमाते हैं या तो शराब पीने में या जुवां खेलने में हार जाते है। जिसकी वजह से आए दिन घर में लड़ाई झगड़े होते रहते है। अपना और आपने बेटे का लालन-पालन करने के लिए मुझे इधर-उधर घरों में झाडू-पोछा करना पड़ता है। मेरे पति अपनी कमाई एक धेला तक मुझे नही देते। और तो और जिस दिन शराब की तलब ज्यादा लगती है और उनके पास पैसे नही बचते, खत्म हो जाते हैं, तो मुझसे मेरी कमाई भी छीनकर ले जाते है। और अगर मैं पैसे देने से मना कर देती हूँ, तो मुझे भी मार पीटकर सारे पैसे छीनकर ले जाते हैं। और ऐसा मारते हैं, कि कई-कई दिन शरीर का दर्द नहीं जाता। आज भी जब मुझसे सारे पैसे छीन लिए और जब मुझे मारने के लिए आगे बढ़े, तब खुद को बचाकर यहाँ भाग आई।
होटल मालिक रफीक ने मुकुल की मम्मी को देखे जा रहे थे, उनकी आंखों से आंसू रूक ही नहीं रहे थे। आंखों से आंसू बहे चले जा रहे थे। इतने में जब होटल मालिक रफीक ने मुकुल की मम्मी से पूछा, ‘‘तो बेटा तुम अपने मां-बाप से क्यों नहीं कहती। उनके पास चले जाओ।
होटल मालिक रफीक की बात सुनकर मुकुल की मम्मी सुशीला ने कहा, ‘‘ भाईजान। मां-बाप क्या होते है ये मैं नहीं जानती, क्योंकि मुझे सबसे पहले धोखा देना तो मां-बाप ने शुरू किया, जैसे ही पैदा हुयी, मां-बाप ने धोखा दे दिया। मेरे मां-बात कौन है, कहां हैं, कैसे है, जिन्दा भी या नहीं, मुझे कुछ पता। होश संभाला तो खुद को एक अनाथ आश्रम में पाया। वहीं पली-बढ़ी, मुझे कोई गोद लेने भी नहीं आया। समय के साथ-साथ जब मैं बड़ी हुयी तो मैंने भी उसी अनाथ आश्रम के बच्चों की देखेरेख शुरूकर दी। आश्रम के बच्चों कीह देखरेख करते-करते, मेरे जीवन के 24 साल कब निकल गये पता नही चला। और जब शादी के काबिल हुयी तो अनाथ आश्रम वालों ने मेरी शादी करा दी। मुझे बाद में पता चला कि अनाथ आश्रम की जिस दाई मां को मैंने अपनी मां से बढ़कर माना, उसी मां ने मेरे साथ जीवन का सबसे बढ़ा धोखा किया और मुझे एक व्यापारी के हाथ बेंच दिया और उस व्यापारी ने कुछ पैसे ज्यादा लेकर एक रिक्शें वाले से मेरी शादी करवा दी। शादी के दो-चार दिन बाद मुझे पता चला, कि मेरा पति एक नम्बर का जुआरी और शराबी है, और उसकी शराब की लत तो इतनी बढ़ी थी, कि जिसकी वजह से उससे परेशान होकर उनके उसके परिवार वालों ने उसे अपनी घर, जमीन और जायदाद सब से बेदखल कर दिया। जिस वजह से उसे कोई अपनी लड़की देने को तैयार नहीं हुआ।
शादी के दो-चार महीने सबकुछ ठीक चला, इसी बीच मेरे गर्भ में मुकुल आ गया। और कुछ दिन बाद मुकुल के पापा ने शराब पीना ने फिर से शराब पीना शुरू कर दिया। आखिर एक शराबी व्यक्ति कब तक नहीं पीता। और फिर क्या था, मेरे पति ने शराब पीना, जुआं खेलना और मार-पीट करना शुरू कर दिया। और घर में खर्च करना भी बन्द कर दिया। और ऐसे ही दिन बीतते गये और कुछ दिन बाद मुकुल पैदा हो गया, मुकुल के पैदा होने से घर का खर्च भी बढ़ने लगा। अपनी और अपने बच्चें की भूख जब मुझसे सही नही गई। तब एक दिन मैं उसी अनाथ आश्रम में रहने चली गई, जहां मैंने अपने जीवन के 24 साल बिताये हैं। और वहां की दाई मां के साथ मेरा बचपन से लगाव है और माँ-बेटी जैसा रिश्ता है, वो तो मुझे समझेंगी, लेकिन बहुत प्यार से सहानुभूति जताकर मुझे अनाथ आश्रम का एक नियम समझा दिया। देखों सुशीला मैंने तुम्हारी शादी कर दी और तुमको अब उसी के साथ रहना पड़ेगा। ये अनाथ आश्रम है, तुम्हारे माँ-बाप का घर नही। उस दिन दाई माँ की बात सुनकर मेरा दुनिया के सारे रिश्तों से विश्वास उठ गया।
मुकुल की मम्मी की दर्द भरी दांसताँ सुनकर होटल मालिक रफीक का दिल दहल गया, क्योंकि उन्होने ऐसे किरदारों और उन किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती कहानी या तो किसी फिल्म में देखी थी। या फिर किसी काल्पनिकता से परिपूर्ण कहानी में सुनी थी। लेकिन उस दिन उस समय एक ऐसा जीता जागता किरदार यथार्थ की जमीन पर बैठा होटल मालिक रफीक के सामने था। मुकुल की मम्मी की मनोदशा पर होटल मालिक रफीक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन फिर भी थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोले, ‘‘बहन इस तरह ंठण्ड में ठिठुरकर तो तुम्हारी तबियत खराब हो जायेगी, चलो मैं तुमको तुम्हारें घर छोड़ देता हूँ।
रफीक की बात सुनकर मुकुल की मम्मी बोली, ‘‘नहीं भाईजान मुझे आपके साथ कही नहीं जाना। क्योंकि अगर मेरा बेबड़ा पति ने आपको मेरे साथ देख लिया तो न जाने क्या-क्या कहने लगेगा।’’
मुकुल की मम्मी की इस प्रतिक्रिया पर होटल मालिक रफीक मुकुल की मम्मी के मन का भय जान गये थे, इसलिए उन्हें मुकुल की मम्मी के साथ जबरदस्ती करना ठीक नहीं लगा। लेकिन वे सड़क पर इधर-उधर देखने लगे। क्योंकि वो मुकुल की मम्मी को यूँ अकेले छोड़कर जाना नही चाहते थे, लेकिन वो समझ नही पा रहे थे, कि आखिर वे मुकुल की मम्मी की मदद कैसे करें। इसलिए वो सड़क के इधर-उधर देखने लगे। काफी देर के बाद उन्होंने कुछ लोगों को अपनी ओर आते देखा, जिसमे एक बालक रोता हुआ चला आ रहा था। जब वे लोग पास में आ गये। तो वह बालक मुकुल की मम्मी के गले से लिपटकर रोने लगा। क्योंकि वो बालक और कोई नहीं बल्कि मुकुल ही था।
मुकुल ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी आप आज फिर से मुझे छोड़कर चली आई। पता है मैं कितना डर गया था। आप मुझे छोड़कर क्यों चली जाती हो बार-बार। आपको पता है न आपके सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नही है। इस पर मुकुल के साथ आए लोगों में मुकुल के घर के पास रहने वाली पुष्पा ने मुकुल की मम्मी से कहा, ‘‘क्यों सुशीला तुझे सिर्फ अपनी फिक्र है, अपने बेटे की तुझे कोई फिक्र नहीं है क्यों ?’’
मुकुल की पडोसन की बात पर हाँ में हाँ मिलाते हुए कुछ वृद्ध व्यक्तियों और मोहल्ले के लोगों ने मुकुल की मम्मी से कहा, ‘‘बेटा अब तुम हमारे घर आ जाती। यहाँ क्यों आ गई। तुम्हारा बेटा मुकुल इतनी देर से परेशान हो रहा है, इसका रो-रोकर बुरा हाल हो गया। कम से कम इसका ख्याल कर लेती।
मुकुल की मम्मी ने अपनी दर्द भरी आवाज में कहा, ‘‘सिर्फ मुकुल की ही वजह से जीवित हूँ, वरना कब का मैने इस संसार को अलविदा कह दिया होता। क्योंकि इसके अलावा इस दुनिया में मेरा कौन है।’’
मुकुल की मम्मी के इतना कहने पर उस दिन सभी लोग खमोश हो गये, क्योंकि सभी मुकुल की मम्मी यानि सुशीला की मानसिक पीड़ा से सभी लोग भली-भाँति परिचित थे। उस दिन सभी लोगों के सामने मुकुल की मम्मी के सिर पर हाथ रखकर कहा, बेटा आज के बाद कभी किसी से ये मत कहना कि तुम्हारा इस दुनिया में कोई नहीं है। क्योंकि अब से मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। उस दिन पहली बार होटल मालिक रफीक ने मुकुल की मम्मी से अपना भाई-बहन का पवित्र रिश्ता छोड़ लिया था। उस दिन मुकुल की मम्मी और मुकुल के साथ पहली बार होटल मालिक रफीक पहली बार मुकुल के घर गये थे। उस दिन मुकुल ने अपनी मम्मी से जब होटल मालिक रफीक के बारे में पूछा तो उसकी मम्मी ने उससे बताया, बेटा तुम हमेशा पूछते थे न। कि हमारा और कोई रिश्तेदार क्यों नही है, तो आज से ये तुम्हारे मामा है। ये कही खो गये थे आज मिल गये। इतना सुनते ही होटल मालिक रफीक ने पहली बार मुकुल को अपने सीने से चिपटा लिया।
मोहित शर्मा ‘‘स्वतन्त्र गंगाधर’’
28 फरवरी 2021