मुझको जीने की सजा क्यूँ मिली है ऐ लोगों
मुझको जीने की सजा क्यूँ मिली है ऐ लोगों
मौत की क्यूँ ये मुझसे दुश्मनी है ऐ लोगों
एक उम्मीद से दरवाज़ों पे दस्तक़ दी थी
कोई खिड़की भी नहीं क्यूँ खुली है ऐ लोगों
कैसे मानूँ,, यक़ीन कैसे करूँ मैं इसका
सारे जज्बों से अलग दोस्ती है ऐ लोगों
देर तक पास मेरे रुक नहीं पाती है खुशी
मुझसे बेहतर ये मुझे जानती है ऐ लोगों
ये तो सच है कि आफ़ताब के उजाले बहोत
चाँद के पास अपनी दिलक़शी है ऐ लोगों
जिस मोहब्बत से मुझसे मिल रहा है शक़ है मुझे
किसी पर्दे में उसकी सादगी है ऐ लोगों