मुजीब: नायक और खलनायक ?
बांग्लादेश में आज फिर दुर्गा पूजा 2021 ई. के दौरान हुए दंगों ने हमें फिर से अतीत में झाँकने और एक नए से मुस्लिम राष्ट्र के चरित्र को समझने का अवसर दिया है। शुरुआत करते हैं शेख हसीना जो वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं और खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती हैं और मानती हैं। वह किस परिवार से आती हैं ये पूरी दुनिया को पता है। क्या सचमुच बांग्लादेश हिन्दुओं के लिए एक सुरक्षित राष्ट्र है? शेख हसीना के महान पिता शेख मुजीबुर्रहमान का चरित्र हिन्दुओं के प्रति कैसा था। आइये इस लेख के बहाने हम उनके जीवन में झांकते हैं।
सन 1940 ई. में आल इंडिया मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल होने के बाद मुजीब राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए, जब वे इस्लामिया कॉलेज के छात्र थे। उस वक़्त उनकी आयु मात्र 20 वर्ष थी। सन 1943 ई. आते-आते मुजीब बंगाल मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। यही वो समय था जब पूरे भारतवर्ष में मुसलमानों द्वारा एक अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) बनाये जाने की मांग उठ रही थी। इसी अवधि के दौरान, मुजीब ने भी अलग मुस्लिम राज्य (पाकिस्तान) के लिए सक्रिय रूप से काम किया और 1946 ई. में वे इस्लामिया कॉलेज छात्र संघ के महासचिव भी बन गए थे। वर्ष 1947 ई. में अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।
मुजीब सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हुसैन सैय्यद सुहरावर्दी (उस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री) के लिए काम करने वाले मुस्लिम राजनेताओं में से एक थे। यानि जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ (सीधा कार्यवाही दिवस) को मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान की माँग को तत्काल स्वीकार करने के लिए’ मचाया गया एक क़त्ले-आम दिवस था। पर्दे के आगे बंगाल में इसका मुख्य खिलाडी ‘हुसैन सैय्यद सुहरावर्दी’ था, तो पर्दे के पीछे मुजीब जैसे मुस्लिम लीग के तमाम युवा कार्यकर्त्ता इस कुकृत्य को अंजाम दे रहे थे। एक्शन डे के दिन “नोआखाली” जिला जो पूर्वी बंगाल में था, बुरी तरह मुस्लिम हिंसा की भेंट चढ़ा। मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक पैमाने में क़त्ले-आम हुआ। नोआखली में दंगे रुकने के बाद, मुस्लिम लीग का दावा था कि, इस तबाही में केवल पांच सौ हिंदू मारे गए थे। जबकि वहाँ बचे प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मुस्लिम लीग की बात का विरोध हुआ और बताया कि दंगों में पचास हज़ार से अधिक हिंदू मारे गए थे। अन्य स्रोतों से यह भी पता चला कि डायरेक्ट एक्शन डे के दंगों से “नोआखली” में हिंदू आबादी लगभग ख़त्म ही हो गई थी। वहाँ अब नाममात्र के लिए ही हिन्दू बचे थे। शुरू में तो बाक़ी दुनिया को नोआखाली के नरसंहार की कानो-कान ख़बर भी न मिली। यह विडंबना ही थी कि जिन विधर्मियों ने यह दुष्कृत्य किया, उनमें से अधिकांश मुसलमान ऐसे थे, जो पचास वर्ष पूर्व के धर्म-परिवर्तित हिंदू थे। इधर कलकत्ता (अब कोलकता) में मात्र 72 घंटों के भीतर ही दस हजार से अधिक लोग मौत के घाट उतारे गए थे। जबकि 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे और बेघर होने वालों की तादाद एक लाख से अधिक थी। इसे अंग्रेज़ी में “ग्रेट कलकत्ता किलिंग” भी कहा जाता है। कलकत्ता के इन दंगाइयों में मुजीब भी अपने साथियों के साथ शामिल थे।
बांग्लादेश के वर्तमान दंगों के बाद अब बांग्लादेशी प्रधानमन्त्री शेख हसीना के बिगड़े बोलों से भी अपने दंगाई पिता मुजीब के उसी रक्तचरित्र की गन्ध आने लगी है। वो कहती है, “बांग्लादेश में हिन्दुओं की रक्षा के लिए भारतवर्ष को भी हमेशा सतर्क रहना चाहिए। अर्थात भारत में ऐसा कुछ भी घटित नहीं होना चाहिए, जिससे उनके राष्ट्र और राष्ट्र के हिन्दुओं पर असर पड़े।”
अनेक बुद्धिजीवियों का मानना है कि मुस्लिम दंगा करने के उपरान्त उसे दबाने-छिपाने, और खुद के लोगों को सही ठहराने के लिए इस तरह के व्यक्तव्य देते हैं। असल में ये मुसलमानों की जेहादी मानसिकता का परिचायक है। मारकाट करके ही उन्होंने अपने लिए पहले पाकिस्तान नामक देश बनाया। फिर 1971 ई. में भाषाई दबाव डालकर, अपने तीन लाख लोगों को मरवाकर, बांग्लादेश बनवाया। पूर्वी पाकिस्तान के इन बंगाली मुस्लिमों को मारने-काटने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के फौजी मुस्लिम थे। भारत ने तो हस्तक्षेप करके और रक्तपात होने से बांग्लादेश को बचाया था।
अपने भाषण में मुजीब की बेटी आगे कहती हैं, ”आमतौर पर बांग्लादेश भारत को कभी भी इस तरह से स्पष्ट संदेश नहीं देते हैं। भले ही इसे लेकर बांग्लादेश में बात होती रही हो। भारत की सत्ताधारी भाजपा में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति (मोदी की तरफ़ इशारा) ने भी बांग्लादेश को लेकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था, तब भी हमने कभी इतना खुलकर नहीं बोला था।” शेख हसीना के व्यक्तव्य से ये बात स्पष्ट होती है कि वह प. बंगाल की मुख्य्मंत्री ममता बनर्जी से काफ़ी प्रभावित हैं और उसी के आधार पर सोची-समझी नीति के तहत बयानबाज़ी कर रही हैं।
सन 1906 ई. में जिस मुस्लिम लीग का गठन हुआ था वह चालीस वर्षों बाद अपने असली मक़सद के करीब पहुँच रही थी। फूट डालो शासन करो की नीति साकार रूप लेती दीख पड़ रही थी। अत: आम हिंदू भी कुछ और ख़ास कटटर हिंदू हो चुके थे और मुसलमान तो स्वभाव से पहले से ही कटटर थे। सदियों पुरानी, दिखावटी, खोखली हिंदू-मुस्लिम एकता की थोड़ी बहुत बची हुई कमज़ोर लकड़ीनुमा इमारत को अब तक अंग्रेज तंत्र भी दीमक की तरह बुरी प्रकार से चाट चुका था। जो किसी भी वक़्त ढह सकती थी।
बेवकूफ़ जिन्ना ने इस दीमक खाई इमारत को, जिसे अब तक गंगा-जमनी तहज़ीब का नाम दिया जाता है तेज़ी से ढहने का काम किया। सनकी जिन्ना जो पिछले ढाई दशक से मुस्लिम लीग के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, अब पाकिस्तान बनाने की उतावलेपन में पागलपन की आख़िरी हद तक पहुंच गए, अतः उन्होंने 15 अगस्त, 1946 ई. को हिंदुओं के खिलाफ ‘डायरेक्ट एक्शन’ (सीधी कार्रवाई) का नादिरी फ़रमान ज़ारी कर दिया। इस वक़्त आत्मरक्षा में हिंदू महासभा भी ‘निग्रह-मोर्चा’ बनाकर प्रतिरोध की तैयारियों में जुट गई। गृहयुद्ध की सारी विकट परिस्थितियां सामने आ खड़ी हुईं थीं।
इस समय अहिंसक महात्मा गांधी के सिद्धान्त खोखले जान पड़ रहे थे। वक़्त की नज़ाकत को भांपते हुए, बापू ने माउंटबेटन से मुलाकात में स्पष्ट कह दिया, “अंग्रेजीतंत्र की ‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति से आज यह हालात बने हैं कि—हम या तो कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु अंग्रेजी राज को ही आगे भी झेलते रहें या फिर भारत आये दिन हिन्दू–मुस्लिम दंगों में महास्नान करता रहे।
इसे ईश्वर का न्याय कहिये। भगवान की लाठी जब पड़ती है तो बड़े-बड़े मसीहा भी सुपुर्दे-ख़ाक हो जाते हैं। जिस मुजीब ने “डायरेक्ट एक्शन डे” के दिन अनेक बेगुनाह हिन्दुओं का क़त्ल किया। उस हथियारे को ऐसा शाप लगा कि 1975 ई. में बांग्लादेश की आर्मी ने ही उसके पूरे परिवार का नाश कर दिया। यदि शेख हसीना विदेश यात्रा पर नहीं होती तो मुजीब के सम्पूर्ण परिवार का ही नाश हो जाता।
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