मुख भा रहा
मुख भा रहा
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कुछ आ रहा,
कुछ जा रहा।
जादू हुआ,
मन छा रहा।
सुन्दर लगा,
मुख भा रहा।
देखा तुझे,
घबरा रहा।
कैसे कहूँ,
शरमा रहा,
कुछ तो बता,
धमका रहा।
सीरत बहुत,
सह पा रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)