मुखौटा
जरुरत क्या है देखकर मुस्कुराने की।
अब मिलो तो मुखौटा उतार कर मिला करो ।।
सुलग रही है ख्वाइशों की चिताये दिल में ।
कभी तन्हा बैठकर खुद जे सच का जिक्र भी किया करो।
चलो मै ही बेकार हू इस बस्ती में ।
तुम भी कभी देखकर आइना, खुद से मिला करो
(अस्ज्विनी विप्र)