मुक्ति द्वार
गीत
शीर्षक – मुक्ति-द्वार
आप यूँ मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
काम सह क्रोध बाधक खड़ा राह में।
जब तलक है पिपासा हृदय में बसी,
अड़चनें हैं बहुत मोक्ष की चाह में।।
वंदना, भक्ति भी,योग भी, ध्यान भी,
आचरण,तंत्र सह ज्ञान पथ मुक्ति का।
जन्म आवागमन का रुके सिलसिला,
हाथ जो थाम ले एक भी युक्ति का।
क्या भला मिल सके मार्ग परधाम का,
मन उलझ जो गया दुश्मनी डाह में।
आप यूँ मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
काम सह क्रोध बाधक खड़ा राह में।१।
बंधनों से परे मोक्ष की मान्यता,
मृत्यु जीवन बिना मोक्ष का है पता।
धूप हो, छाँव हो या कि ओले पड़ें,
निष्प्रभावी रहे मोक्ष सिंचित लता।
ओ पथिक! कामना तज करो साधना,
क्यों भला तन उलझता रहे दाह में।
आप यूँ मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
काम सह क्रोध बाधक खड़ा राह में।२।
जन्म से मौत तक का गमन है कठिन,
देह को गेह संताप का मान लो।
रूप बिन जीव का हो भ्रमण शून्य में,
शून्यता में विलय मोक्ष है जान लो।
जन तड़पता रहे उम्र भर इस तरह,
ज्यों तड़प है समाहित जकड़ ग्राह में।
आप यूँ मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
काम सह क्रोध बाधक खड़ा राह में।३।
अभय कुमार “आनंद”
विष्णुपुर, पकरिया,बाँका,बिहार