मुक्तामणि छंद एवं मुक्तामणि कुंडल
मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक]. एवं मुक्तामणि कुंडल
विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति,
विषम चरण में यति 12
चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l
कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
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मुक्तामणि कुंडल
हिंदी में दो सौ से अधिक अभी लोकप्रिय छंद हैं , और गेयता के आधार पर नए छंद भी सृजित हो जाते हैं , कुछ विद्वान जितना अपने गुरु से पढकर आए हैं , उससे आगे कुछ स्वीकार ही नहीं करते हैं, प्रलाप विवाद के अखाड़े में ताल ठोकने लगते हैं , खैर इस विषय को यहाँ छोड़ते हैं
यहाँ हम चर्चा कर रहे है , मुक्तामणि छंद से आधारित मुक्तामणि कुंडल की | कुंडल कान में पहनने बाला एक गोल आकृति का आभूषण है , यह आकृति जहाँ से प्रारंभ होती है , वहीं पर आकर समाप्त होती है
मुक्तामणि कुंडल की शैली , कुंडलिया , कुंडलिनी से ली गई है
विधान मुक्तामणि छंद का व शैली कुंडलिया कुंडलिनी से है
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मुक्तामणि छंद –
गान धवलता से नहीं , होता है उजयाला |
बदबू कचरा ढ़ेर हो , क्या कर देगा ताला ||
(इस छंद में अधोलिखित सृजन से मुक्तामणि कुंडल बन जाएगा )
?
क्या कर देगा ताला , चाहते पूर्ण सफलता |
दूर हटाना गंदगी , पाएं गान धवलता ||
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{इसी तरह नीचे लिखा सृजन मुक्तामणि छंद एव मुक्तामणि कुंडल समझिए ) मुक्तामणि कुंडल में छंद का चौथा चरण ही पांचवा , (१२ मात्रा) रहेगा व आगे छटवाँ १३ मात्रा का हो जाएगा , पर सातवाँ , आठवां अपने विधान १३-१२-पर रहेगा |तथा जिस चौकल शब्द से प्रारंभ किया था , उसी चौकल शब्द से समापन होगा | यह कुंडल चौकल से ही प्रारंभ करना होगा क्योकि इसमें चरणांत २२ मात्रिक होता है
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अपना गाकर गान जो, अपनी बाजू ठोके |
उनको तोता मानिए , कौन उसे क्यो रोके ||
+?
कौन उसे क्यो रोके, पालकर झूंठा सपना |
विषधर बनते दर्प के, घात करें खुद अपना ||
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रखता जीवन में सही , जो भी नेक इरादा |
उनका भी ईश्वर सदा , पूरा करता वादा ||
+?
पूरा करता वादा , सत्य सुभाष. अब कहता |
मिली सफलता जानिए, जो जीवन शुचि रखता ||
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भोले ऊपर से दिखे , चालाकी हो अंदर |
क्या कर बैठे कब कहाँ , समझों इनको बंदर ||
+?
समझों इनको बंदर , डाल से चीं चीं बोलें |
अपना ही हित साधता , ऊपर नीचे डोलें ||
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कागा कपटी बोलता , हमें मोर ही जानो |
काँव – काँव करता रहे , कहें गीत ही मानो ||
+?
कहे गीत ही मानो , लहराकर एक धागा ||
कहता रस्सी जानिए , धोखा देता कागा ||
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माली देखो बाग का , नेह सभी से रखता |
फूलों की माला बने , उपवन पूरा हँसता ||
+?
उपवन पूरा हँसता , देखिए बजती ताली |
बंदन होता बाग का , हर्षित रहता माली ||
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मुख में भरकर गालियाँ, जो भी नभ में थूके |
खुद के मुख पर लोटता , कर्म यहाँ पर चूके ||
+?
कर्म यहाँ पर चूके, लगाकर आगी सुख में |
अमृत को तज आदमी,रखता विष को मुख में ||
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©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ)म०प्र०
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मुक्तामणि छंद
अपना हित ही देखना , नहीं बुरीं हैं बातें |
पर ऐसा मत कीजिए ,चलें किसी पर लातें ||
शोर मचाने से नहीं , कभी बरसता पानी |
रटत- रटत हरि नाम भी , तोता बना न ज्ञानी ||
एक अनीति कर गई , रावण की बदनामी |
करते जो ताजिंदगी , क्या समझेगें कामी |
ज़ख्म कुरेदे जग सदा , देकर चोट निशानी |
आरोपों को थोपता , करता है नादानी ||
छाया के सँग फल मिलें, और दाम भी मिलते |
पर पत्थर मत मारिए , आम पेड़ जब लगते ||
हम समझे हालात को , हल करने की ठानी |
हाथ जलाकर आ गए , कड़वा पाया पानी ||
मिलती रहती हैं यहाँ , मतलब की सब यारी |
अजमाकर भी देख लो, दिल में चुभे कटारी ||
देखो इस संसार में , तरह-तरह के रोगी |
सबके अपने रोग हैं , दाँव पेंच उपयोगी ||
ज्ञानी अब सब लोग हैं, कौन करे नादानी |
नहीं मुफ़्त में बाँटिए , अपना अनुभव पानी ||
माल बाँटिए मुफ़्त में , कमी निकालें खोजी |
कचरा जाओ बेचनें , चल जाती है रोजी ||
©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ)म०प्र०