मुक्तक
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चारित्रिक गतिविधियों से मैं
कुलीनता की थाह बताऊँ
जो हैं वंचित और तिरस्कृत
उन सबको भी गले लगाऊँ।
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मुझसे कभी मदद मांगो तो
बन सहयोगी प्रीत निबाहूँ
न मैं किसी पर रौब जमाऊं
ना मैं रौब देखना चाहूँ।
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संजय नारायण