मुक्तक
कत्ल कर ना यूं तीरे नज़र से मुझको
हम तो पहले से ही तुझी पर मरते हैं
आती हो ख्यालात में मेरे तुम जब
चाँद छुप जाता है अपने ही आगोश में
क्यों परेशां करती हो तुम मुझको
तेरे साये से भी अब तो प्यार है मुझको
जी करता है कि तेरी नज़रों की ख़ातिर
नज़र कर दूं मैं जिंदगानी अपनी
तूं मने या ना माने सिर्फ तेरे ख़ातिर
इस जिस्म में है स्वांसे मेरी ।।
?मधुप बैरागी