मुक्तक
जुस्तज़ू क़ुरबत की फ़िर से बहक रही है।
तेरी बेरुख़ी से मगर उम्र थक रही है।
रात है ठहरी सी तेरे इंतज़ार में-
तिश्नगी आँखों में फ़िर से चहक रही है।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय
जुस्तज़ू क़ुरबत की फ़िर से बहक रही है।
तेरी बेरुख़ी से मगर उम्र थक रही है।
रात है ठहरी सी तेरे इंतज़ार में-
तिश्नगी आँखों में फ़िर से चहक रही है।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय