मुक्तक
ज़िन्दगी इस तरह भी बिताया हूँ मैं
हर घड़ी मौत को पास पाया हूँ मैं
दोस्त अहबाब सब दूर जाने लगे
फिर अकेले ही खुद को रुलाया हूँ मैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
ज़िन्दगी इस तरह भी बिताया हूँ मैं
हर घड़ी मौत को पास पाया हूँ मैं
दोस्त अहबाब सब दूर जाने लगे
फिर अकेले ही खुद को रुलाया हूँ मैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)