मुक्तक
मनदीप दुआओं का सपनों की मुंडेर पर जला है
संसार ने तो गहरे से कदम -कदम मन को छला है
हार मानी है कहाँ तम से फिर जिद्दी उजालों ने
खम ठोक फिर सुराखों से सही सूरज तो निकला है।
बीना
मनदीप दुआओं का सपनों की मुंडेर पर जला है
संसार ने तो गहरे से कदम -कदम मन को छला है
हार मानी है कहाँ तम से फिर जिद्दी उजालों ने
खम ठोक फिर सुराखों से सही सूरज तो निकला है।
बीना