मुक्तक
::::::::::::::::::::मुक्तक :::::::::::::::::::::
1-चाँदनी रात थी छत पर टहल रहा था मैं
किसी की याद में दीपक सा जल रहा था मैं
उनको फुर्सत ही कहाँ आते जो खयालों में
चैन पा जाने को आंसू निगल रहा था मैं
2-दुनियाँ बदल रही है मै भी बदल रहा हूँ
नादान था मैं अब तक कबसे फिसल रहा हूँ
लोगों की नफरतों से लड़ना भी आ रहा है
गिरता रहा हूँ लेकिन मैं अब संभल रहा हूँ
3सागर की सरगम शाहिल से हिलती डुलती लगती है
उसकी मेरी आदत मुझसे मिलती जुलती लगती है
वो बरखा की बूंदों जैसी सावन जैसी मनभावन
गरमी के मौसम की शामों रातों जैसी लगती है
4-उजाले अपनी यादों के मेरे साये में रहने दो
ये आंसू प्रेम के मोती सदा धारे में बहने दो
मेरी खामोशियां तुमको सताये तो समझ लेना
मैं दरिया हूँ बड़ा लेकिन मुझे खामोश बहने दो
5-मेरा माही , मेरा हमदम , मेरे सीने में रहने दो
मोहब्बत का नशा शाकी , मेरे पीने में रहने दो
मैअपनी मौत को दुल्हन बना लूँ तो मगर सुनलो
मेरे इस दिल के टुकड़े को, तेरे सीने में रहने दो
6लिपटकर जिस तरह से तुम मुझे अपना बनाते हो
मैं ऐसा ख्वाब हूँ जिसको सदा तुम भूल जाते हो
सुखाकर जिस्म को अपने तुम्हें मशहूर कर जाऊँ
मिलन आंसू का आँखो से मगर तुम क्यों कराते हो
7तमन्ना फूल की रब से मुझे बस मुस्कुराने दो
भ्रमर कोई जो गाये तो उसे बस गुनगुनाने दो
खड़ा हूँ शान से जब तक ये मुझमे जान बाकी है
पहाड़ों से जरा कह दो जरा सी धूप आने दो
रचनाकार-कवि योगेन्द्र सिंह योगी. . 7607551907